झुकी पलकें , 'कदम बहके लजाना हो तो ऐसा हो।
तुझे देखा तो दिल बोला ख़ज़ाना हो तो ऐसा हो।
जो उसके साथ चलता हो मगर हद में भी रहता हो।
ये हर लड़की की ख्वाहिश है दिवाना हो तो ऐसा हो।
अगर क़िस्सा लिखो तो ऐसा लिखना तुम ऐ क़िस्सा गो।
जिसे सुनकर कहे बुत भी फसाना हो तो ऐसा हो।
न हो पाए गुमाँ तक भी मिलन का इन रक़ीबों को।
ज़बाँ पर आपकी जानम बहाना हो तो ऐसा हो।
न 'अपना हौश हो मुझको न ख़बरें हों ज़माने की।
तिरी नज़रों 'का 'दिल मेरा निशाना हो तो ऐसा हो।
*मिन्नत गोरखपुरी*
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