साहित्य चक्र

26 April 2020

अर्वाचीन भारत

अर्वाचीन भारत
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अर्वाचीन भारत का
 मे परिवर्तन  चाहता हु |
प्राचीन संस्कृति को
फिरसे लाना चाहता हु |

सरपे पगडी भगवा की
कुर्ता, धोती  वेश चाहता हु |

हाथो मे छड़ी खुमार की
और गले मे माला परिवेश चाहता हु |

जब सूरज उगे मेरे  वतन आँगन,
मे खेत मे हल चलाना चाहता हु |
जब आये पंछी मेरे खेत,
मे सरसों के फूल लहरना चाहता हु |


अर्वाचीन भारत का
मे परिवर्तन  चाहता हु |
प्राचीन संस्कृति को,
फिरसे लाना चाहता हु |

जब सूरज हो मद्यान
मे पीपल की छाँव मे विराम चाहता हु |

मक्खन और प्याज़ के साथ,
बाजरे की रोटी मन के हाथ चाहता हु |

पनघट पे मिले सखिया पनहारी बनके,
करें सब अलहड़िया बालिका बनके |
नृत्य करें सब मधुबन मे ऐसा राश चाहता हु,
मेरे भारत का ये रमणीय दृश्य चाहता हु |


अर्वाचीन भारत को में
जनजोड़ना चाहता हु |
प्राचीन संस्कृति को फिरसे
लाना  चाहता हु |


                               एक एहसास अल्पा मेहता


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