साहित्य चक्र

18 April 2020

कितने ही घर अंधियार हुए

सन्नाटा


ये कैसी ख़ामोशी है कैसा सन्नाटा पसरा है।
विश्व यहाँ सदमे में है हर इंसां डरा डरा सा है।

शहर गली वीरान हुए कितने ही घर अंधियार हुए
आ इस दानव के चंगुल में कितने घर हैरान हुए।

विश्व डरा सहमा सा है कैसी ये विपदा आई है ?
हर ओर है छाई वीरानी छाई कैसी तन्हाई है।

मच रही ये कैसी तबाही कैसा मचा हाहाकार है।
मौत का मंज़र सजा है, हो रहा चीत्कार है।

बेबसी है बेखुद है तबाही मौन का साम्राज्य है।
हर तरफ पसरी ख़ामोशी चुप धरा आकाश है।

ले रही बदला प्रकृति मनु तेरे व्यवहार से।
सिसक उठी ये क़ायनात मानवी प्रहार से
रूह भी दहल गया देख कर ऐसा कहर।

वेदना विह्वल धरा खामोश है गली शहर।
रो रही वसुंधरा विचलित हुआ आकाश है।

अंजाम है बाकी अभी ये तो अभी आगाज़ है।

@मणि बेन द्विवेदी


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