पलायन
आज वीरान सड़कों पर भीड़ का रेला देखा।
सिर पर सामानों की गठरी हाथ मे बच्चों को देखा।।
लोग पलायन कर रहे एक जगह से दूसरी जगह जा रहे।
अपने घर जाने की जिद ठान रखी है इन्होंने।
भूखे प्यासी जनता भटक रही कहाँ होगी मंजिल इनकी।
बस चले जा रहे संक्रमित भी होंगे या नहीं ये।
क्या पता ये घर पहुंचेंगे कब तक रास्ते बड़े लंबे हैं।
लेकिन इनके हौंसले पक्के और कदम आगे हैं।
परमिशन लेने लम्बी कतारों में खड़े हो निकल पड़े।
ये अपने परिवार से मिलने अपने बच्चों के साथ।।
लोक डाउन में इन मजदूरों को सड़कों पर देख।
सोचने लगा इनका तो भगवान ही रखवाला है।
इन्होंने तोड़ दी लक्ष्मण रेखा रेल की पटरी के सहारे चलते।
सड़कों पर इनके डग भरते रोज देखता हूँ।।
डॉ. राजेश पुरोहित
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