साहित्य चक्र

19 April 2020

मदन रति कामातुर प्रियतम



मधुर मधु मधुमास  संगिनी,
ये  उमंग  यौवन  मधु  नीर।
मृदुल कल्पना के संगम पर,
चले प्रिय कहीं  सरिता तीर।

चलो प्रिय  एकांत  विजन में,
रचे    एक    नूतन   परिवेश।
बहे जहाँ नित अविरल शांति,
संग  न हो  जग  का  आदेश।

चले प्रिय सब भूल कटुता,
जग का कोलाहल विलग।
चले बनाले पर्ण कुटीर हम,
सबसे  प्यारी  नयी,अलग।

जैसा भी हो रूखा सुखा,
खा पी लेगे  ताजा  नीर।
नेह  गेह  प्रमोद  प्रीतरंग,
खग कलरव संगम सर तीर।

तू मुझमें नित डूब,डूब मै,
जाँऊ तुझमें दिन अरु रैन।
तू  मेरे  संताप   मिटाना,
मैं तुझको दू हर पल चैन।

हे मेरी प्रिया! संग निभाना,
बनकर नूतन शब्द नवीन।
मैं कविता के छंद गढूँगा,
राग लय यति तू आसीन।

 मदन रति कामातुर प्रियतम
खिले कुसुम, खगदल संगीत।
मधुर मृदुल मोहक मधुवन में,
मधु महके बहके मनमीत।।

                                  हेमराज सिंह 


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