साहित्य चक्र

24 April 2020

वाह रे , कोरोना


     
वाह रे , कोरोना ! तूने तो गजब कर डाला ,
छोटी सोच और अहंकार को ,
तूने चूर-चूर कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

पैसो से खरीदने चले थे दुनिया ,
ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में ,
तूने तो पैसो को भी , धूल-धूल कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन ,
लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी ,
तूने एक झटके में सारा जहां , सुनसान कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

दिहाड़ी करने वाले मजदूर ,
खेत पर काम करते गरीब किसान ,
तूने तो इनको बिल्कुल , कंगाल कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में ,
गरीबों को अपने घर आने के खातिर ,
कोसों पैदल चलने को , मजबूर कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस ,
देखो !  सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर  ,
हम सब लोगों का , विचार बदल डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

डॉक्टर को कहते थे तुम लुटेरे ,
आज फिर इस वैश्विक महामारी में ,
धरती का भगवान है डॉक्टर , ये साबित कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

सफाई कर्मियों को नीचता से देखते हो ,
देखो ! आज कैसे सेनिटराईज कर रहे भारत को ,
इन्ही लोगों ने भारत का  , हाल बदल डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

शिक्षक तो होते ही है सबसे न्यारे , 
आज दिन रात लगे है हम सबको बचाने ,
हमारे दिल में और सम्मान बढ़ा डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

कोरोना से दिन रात लड़ रही सरकार ,
राजनीति को ताक में रख लॉकडाउन से ,
इस कोरोना महामारी पर शिकंजा कस डाला । 
वाह रे , कोरोना  ! .....

सिर्फ जनता हित के लिए ही तो खड़े है तत्पर ,
पुलिस , डॉक्टर , सफाईकर्मी , शिक्षक और प्रशासन ,
इन पांचों ने तो अपना सब सर्वस्व दे डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......

कोरोना हारेगा हमारी एकता से " जसवंत " ,
फिर देखना दुनिया देखेगी , कैसे भारत देश ने ,
कोरोना महामारी का सत्यानाश कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ......


                              जसवंत लाल खटीक


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