साहित्य चक्र

03 April 2020

भरी है अबीरों गुलालों से झोली

बहारें सजाएँ सितारे नूरानी।
लगे ऋतु बसंती बहुत ही सुहानी।।
सभी मीत होते सहज ही दिवाने।
मगन प्रेम में हो सुनाए तराने।

भरी है अबीरों गुलालों  से झोली।
बजे गीत फगुआ रचै भंग टोली।
सभी एक रंँग हों न दे कोई धोखा।
लगाओ सदा रंग सबको अनोखा।।

लगी हों कतारें सभी द्वार आएँ।
गले से लगाकर सभी दुख भुलाएँ।
खुशी का समाँ है हँसी सब नजारे।
जमीं पर उतर आए सुंदर सितारे।

सजी प्यार से ज्यूँ नवल एक गोरी।
बँधा एक बंधन महज प्रेम डोरी।।
यहाँ रंग प्यारा सभी को चढ़ा है।
ये त्यौहार होली हमीं ने गढ़ा है।

यही खेल राधा मगन से कन्हाई।
इसे खेलने आज मीरा भी आई।
यही संस्कृति की सलोनी झलक है।
जिसे खेलने की सभी में ललक है।।

बढ़ा दम्भ जब भी जली होलिका ही।
जली खुद वही  तो कहे तूलिका भी।
बचालो धरा को सहज नेक जानो।
रहेगा सदा ही नियम एक मानो।

यहाँ एक धरती का साथी गगन है।
यही एक होली का मधुमय चलन है।। 


                                      *मधु शंखधर स्वतंत्र*

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