साहित्य चक्र

23 April 2020

जीवन के रंगमंच की कठपुतलियां



 कठपुतलियां है जीवन के,
 रंगमंच की ।

जुड़ी हैं जिन धागों से ,
जो सभी के,
धागों को नचाता है ।

किसी को,
वो कठपुतली वाला ,
नजर नहीं आता है।

ढील देता है सबको ,
अपने-अपने किरदार में ,
परखता है हर इंसान को,
अपने दिए हुए संस्कार से ,

देखता रहता है सबको ,
उनके अदा किये किरदार में,
कैसे भटक रहे हैं ।
उलझे हैं किन ख्यालात में ।

भूल जाते हैं हम 

है हम किसके हाथ में ,
सोचते हैं............... बस 
हम ही हैं इस संसार में ,

सबको नचाते है। 
कभी पैसों से,
कभी ताकत के अंहकार से।
लेकिन.........

कब उसके हाथ के,
धागे खींच जाते हैं।

जीवन के रंगमंच से, 
कितने किरदार निकलते ।
और कितने नए आ जाते हैं ।

कठपुतलियां नाचती रह जाती है।
पर धागों से बंधी होकर भी, 
उस धागे वाले तक नहीं पहुंच पाती हैं।

                                    प्रीति शर्मा "असीम"


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