साहित्य चक्र

19 April 2020

कलियां मुस्कुराने लगी



पहले विपदा टले गीत गायेंगें हम
अपने जीवन के सब मीत पायेंगें हम
दौर मुश्किल है किंतु गुजर जायेगा
साथ देते चलो जीत जायेगें हम

फिर से गौरैया आंगन में आने लगी
फिर से बागों में‌ कलियां मुस्कुराने लगी
फिर‌ से गंगा का जल आज निर्मल हुआ
फिर से जलता शहर आज शीतल हुआ

देख लो क्या मिला हमको घर बैठकर
फिर से शायद सबब  सीख जायेंगे हम
अपने जीवन के सब मीत पायेंगें हम
दौर मुश्किल है कितु गुजर जायेगा
साथ देते चलो जीत जायेंगें हम

 फिर घर सब मकां में बदल जायेंगें
फिर से सड़कों पर आदमी निकल जायेंगें
जीत कर ‌हार जायेगें हम जंग ये
फिर से  इंसान जो गर बदल जायेगें

थोड़ा ‌धीरज धरो सब घरों में रहो
मुस्कुराते रहो बीत जायेगें गम
दौर मुश्किल है किंतु गुजर जायेगा
साथ देते चलो जीत जायेंगें हम

                                           कंचन तिवारी "कशिश"


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