साहित्य चक्र

18 April 2020

कोरोना का कहर

शीर्षक-कोरोना का कहर सताता
देखो कोई आता न जाता
कोराना का कहर सताता..
यूँ शहरों में पसरा सन्नाटा
भूल से भी भूला न जाता..


न मिलो किसी से न हाथ मिलाओ
दूर-दूर रहकर हर राब्ता निभाओ
ये बुरा वक़्त ही तो पहचान कराता
अपने और परायों में भेद बताता
कोरोना का कहर सताता..


हैण्डशेक के रीति-रिवाज विफल है
करबद्ध नमन की संस्कृति सफ़ल है
जीवन-रक्षा का अभियान स्वच्छता
लॉकडाउन बेहतर रोल निभाता
कोरोना का कहर सताता..


कोरोना बीमारी ये महामारी है
स्पर्श से जन-जन में अभिसारी है
अस्पृश्यता से परिचय करवाता
सहयोग भाव सबको सिखाता
कोरोना का कहर सताता..


परिवार साथ है दिखे मगर
जैसे लुप्त उनमें खुशियाँ पर
वक़्त दूरियाँ कितनी बढ़ाता
बिन गृहक़ैदी हो जान न पाता..
कोरोना का कहर सताता..



                                       अनामिका वैश्य आईना


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