साहित्य चक्र

26 April 2020

शुक्र मनाओ!

यदि
धरती बोल पाती‌
तो ऊँचे स्वर में जताती
अपना प्रतिरोध,
बताती तुमको
कि पहले वह नीली थी
अब लाल लहुलुहान,
बताती
अपनी सारी पीड़ा
अपना सारा दु:ख
कि कैसे तुमने‌
उसके जिस्म को
चीरफाड़ कर रख दिया
जैसे भूखे भेड़ियों के हाथ
लग गया हो कोई हिरण।
बताती
कि कैसे उसके
असंख्य सिपाहियों को
तुमने एक-एक कर काटा
और उन लाशों पर
खड़े किये अपने महल,
शुक्र मनाओ!
धरती बोल नहीं सकती
वरना
मांग लेती तुमसे
अपनी ज़मीन वापिस
और कर देती तुम्हे बेघर।

                                     रमन भारतीय


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