प्रकृति ने सजाई है, कितना
सुंदर बाग।
जंगलों में भी सुनाती,
कोयल
अपनी राग।।
इसके मधुर तान से, हर्षित
होता मन।
रहे प्रकृति की छाया में, रोग
मुक्त ये तन।।
आज चहूँ ओर छाया है, शहरों
में अंधियारा।
दलदलों में फसकर सब, ढूँढ़
रहा किनारा।।
देख ऐसे दृश्य को,
इनसे लें कुछ सीख।
वरना आने वाले कल को, माँगेगे
सब भीख।।
प्रकृति में नही है, किसी
चीज की कमी।
प्रदूषण फैलाकर सबने, बंजर कर
दी जमीं।।
आओ एक संकल्प करें,
प्रकृति को बचाने का।
प्रातः काल में आनंद लें, पक्षियों के करतल
गाने का।।
✍गौतम कुमार
वाहे गुरु
ReplyDeleteबहुत ही मनभावक !ॐॐॐॐॐॐॐ卐ॐॐॐॐॐॐॐ