कोरोना-वायरस के चलते लॉक-डाउन हुए चार पांच दिन हो गए। सरकार को देश हित में, देश वासियों की सुरक्षा हेतु ये कदम उठाना पड़ा। बच्चे,बूढ़े, युवक युवतियां सभी न चाहते हुए भी महामारी के डर से मजबूरन घरों में कैद हो गये। सोसायटी का गार्डन, प्ले-एरिया, क्लब- हाउस, मंदिर, स्वीमिंग पूल सभी सुनसान। घरों में रह कर खाना-पीना, सोना और फिर पति-पत्नी का झगड़ना बस यही काम रह गया। लॉक-डाउन से पहले हर रोज अपने अपने ऑफिस जाना थके हुए आकर डिनर के बाद सो जाना।अगले दिन फिर वही दिनचर्या। लड़ाई झगड़े का वक्त ही कहाँ था?
इन्हीं विचारों में उलझे रात के ढाई बज गए किन्तु आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।दिन में जो सो ली थी। वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गई। उसने खिड़की से बाहर रोड पर झांका तो सोलहवीं मंजिल के अपने इस फ्लैट से देखा हाईवे पर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था।घबरा कर उसने नज़रें सोसायटी की साइड वाली विंडो पर घुमा लीं। दांये-बांये वाली बिल्डिंगों की बत्तियां गुल थीं। लेकिन ये क्या?? सामने वाली बिल्डिंग पर नज़र पड़ते ही वो उत्सुकता से दम- साधे देखने लगी। ठीक उसके सामने वाले फ्लैट की विंडो पर कुछ हलचल सी लगी दो सिर उभरे और अगले ही पल लगा जैसे कोई भारी भरकम चीज़ नीचे के घास वाले एरिया में गिरी है या गिराई गई है। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दिया।
मोबाइल में देखा तीन बज चुके थे।ओहह लगता है आज तो सारी रात जागते ही निकल जाएगी। वह लेट गई और फिर से सोने का प्रयास करने लगी। किन्तु ग्राउंड से आती आवाज सुन वह फिर से उठ गई नीचे देखने लगी। गार्डन के खम्बे पर लगी लाइट में दो आदमी खडे दिखे। " सर आप कह रहे थे कि आपकी पत्नी गिर गई है उसे उठवाना है।पर ये तो मर गई लगता है।" अरे!ये तो सोसायटी के वॉचमैन की आवाज है। वह हैरानी से सब देख रही थी, दूसरे ने क्या कहा साफ नहीं सुन सकी। " सर मैं इसको हाथ नहीं लगाऊंगा।" वॉचमैन ने दृढ़ता से कहा और वह अपने स्थान पर ही खड़ा रहा। दूसरे ने कुछ धीरे से कहा और वह स्वयं ही दोनों हाथों से खींचते हुए लिफ्ट की तरफ बढ़ने लगा। वह शंकाओं से घिरी सब देख रही थी। वह साथ वाली टेबल से पानी की बोतल उठा गटागट आधी बोतल पी गई।सोचा पति को उठा कर ये सब बताऊं। किन्तु पति की भी नींद खराब होने के डर से नहीं उठाया। अवश्य ही सुबह कोई बुरा समाचार मिलने वाला है यही सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।
लॉक-डाउन के कारण सुबह किसी को भी बिस्तर से उठने की जल्दी नहीं थी।
" मम्मा सोसायटी में पुलिस आई है, सामने वाली बिल्डिंग में,मम्मा उठो न।" बच्चों की आवाज सुन वह उठी। उठते ही उसे रात वाली घटना याद आ गई। पर मोबाइल पर मैसेज की आवाज सुन वह मैसेज देखने लगी। सोसायटी की लेडीज़ के वट्सैप-ग्रुप पर मैसेज था " श्रुति ने खिड़की से कूद कर जान दे दी।" वह सकते में आ गई, ओह! तो वह श्रुति थी। पर 6 और 2 साल के बेटों को छोड़ कर वो जान क्यों देगी? हमेशा चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए शांत रहने वाली श्रुति जब भी प्ले एरिया में दोनों बेटों को खेलने के लिए लाती। थोड़ी देर होते ही बच्चों को बुला चल देती।बच्चे कुछ देर और खेलने की जिद करते तो वह असमंजस की स्थिति में कहती "नहीं बेटा डिनर बनाने में देर हो जायेगी तो आपकी दादी गुस्सा करेगी।" और बेचारी रुआंसी हो जबर्दस्ती बच्चों को ले जाती।
रात के दृश्य उसके मन को उद्वेलित कर रहे थे....तो खिड़की पर वो दो सिर किसके थे, कई हाथों का कुछ भारी फैंकने जैसा आभास, न चीख़ की आवाज।कहीं पहले से बेजान देह ही....। अगले दिन पुलिस फिर आई और चली भी गई। अधिकतर खिड़कियों से निस्पंद नजरें निहार रही थीं। टी वी पर, समाचार पत्रों में ताज़ा समाचार था।
"मुम्बई, महाराष्ट्र में चालीस वर्षीय युवती की कोरोनावायरस से एक और मौत।"
राजश्री
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