साहित्य चक्र

18 April 2020

आख़री मोहब्बत होना चाहतीं हूं

जिसके ख्या़ल से भी तू न बे़ख्यांल हो,
मैं तेरा वो ख़्याल होना चाहतीं हूं।
महक जाए जिसकी आमद से दुनियां तेरी, 
मैं वह भीनी सी खुशबू होना चाहतीं हूं। 


मैं तेरी पहली नहीं मैं तेरी, 
आख़री मोहब्बत होना चाहतीं हूं 
गुनगुनाहट सी बनकर तेरे होंठों पर सजे 
मैं वो मीठा सा एक नगमा होना चाहती हूं।

रिश्ता जैसे हो रूह और बंधन का, 
मैं तेरी जिंदगी का वो अहम हिस्सा होना चाहतीं हूं।
मैं तेरी पहली नहीं मैं तेरी, 
आखरी मोहब्बत होना चाहतीं हूं। 

हर मुश्किल में जो थामें हाथ,
जो हर घड़ी रहें साथ, 
मैं वो दोस्त होना चाहती हूं 
कोई आच भी न आए कभी, 
हर वार को जो झेले, 
मै वो ढ़ाल होना चाहतीं हूं 
मैं तेरी पहली नहीं तेरी, 
आखिरी मोहब्बत होना चाहती हूं 
कभी दीवाली के दीप सी, 
कभी होली के रंगों सी, 
मैं तेरा हर एक त्यौंहार होना चाहतीं हूं 
जीवन में जो लाए ख़ुशी 
हर ओर छांऊ बाहर सी 
मैं बसंत कि वो सुहानी रूत होना चाहतीं हूं 
मैं तेरी पहली नहीं तेरी, 
आखरी मोहब्बत होना चाहतीं हूं।

लोगों से सुना है पहला प्यार सच्चा होता है!
मगर, मेरा मानना है कि पहला प्यार कच्चा,
और आखिरी प्यार ही सच्चा होता है 
जो तुझे पाने को हद पार हो, 
मैं वो बेहद सी होना चाहतीं हूं 
मैं तेरी पहली नहीं,
आखरी मोहब्बत होना चाहतीं हूं 
पहली मोहब्बत को मैंने 
अक्सर दम ही तोड़ते देखा है 
और आख़री मोहब्बत में 
मुर्दों को भी ज़िंदा होते देखा है 
मैं ना उम्मीद के आसमान में 
एक उम्मीद बनना चाहतीं हूं मैं 
तेरी पहली नहीं बस, 
आख़री मोहब्बत बनना चाहतीं हूं।

                                               नूपुर


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