साहित्य चक्र

18 April 2020

जिंदगी की किताब



वक्त हर किसी को एक मोका जरूर देता,अपनी जिंदगी रूपी किताब को संसोधित (एडिड ) करने का। अपनी कमियों को सुधारने ,अपनी गलतियों से सीख लेने और आगे पुनः ये गलतियां न हो,इन सब बातों पर गहरे मनन करने का।

                                         

इस किताब (जिंदगी) में कुछ पन्ने ऐसे होते है,जो अनजाने में हमसे लिखा जाते है उनके शब्द अपको उस वक्त क्षणिक सुख तो देते है,मगर वक्त बीतने पर वही हमे जिंदगी भर चुभने वाले,नासूर घाव दे जाते है। इन पन्नो को न तो हम इस किताब से हटा सकते है,और न ही इन लिखे अल्फाजो को मिटा सकते है।

किंतु एक वक्त ऐसा आता है,जब हम अपनी इस किताब में कुछ नए और खूबसूरत जज्बात वाले नए पन्ने जोड़ सकते है।जिससे इस किताब की कमियाँ, बुराईयां अपने आप धुंधली पढ़ जाएगी। लेकिन व्यक्ति उस मोके को अक्सर, अपनी दूरदृष्टि और एक सुलझे हुए नजरिये की कमी, पुराने आघात से व्यधित होकर खो देता है।

उसकी दो वजह है।

पहली वजह तो ये, की वो अपनी पहली गलती, पहली भूल जो अकस्मात हुई है जिसमे उसका कोई दोष था ही नही।उसे नियति मान बैठता है,और जो हुआ यही मेरी किस्मत थी, ये सोच कर वह अपनी किताब को संशोधित करना ही नही चाहता।तथा दूसरा व्यक्ति वो है जो इस मौके को स्वीकार तो कर लेता है,मगर बार बार इस नए पन्ने की तुलना उन पुराने पन्ने से करता है।जिस वजह से ये नया पन्ना जो उसकी किताब का सबसे खूबसूरत पन्ना बनने वाला था,अपने महत्व को इस तुलना के मायाजाल में खो देता है ,और व्यक्ति फिर असफल हो जाता है। अपनी जिंदगी रूपी किताब को एक नया आयाम देने से।

इसलिए जब भी वक्त आपको मोका दे ,अपनी जिंदगी रूपी किताब में नए पन्ने जोड़ने का, एक नई शुरुआत करने का। तो पूरे मन से बिना किसी संकोच के, उस मोके को स्वीकार करे।और उन चंद पन्नो को उतनी ही खूबसूरत से सजाने के प्रयास करे,जितनी कोशिस आपने उस किताब को सजाने में की थी।

                                            ममता मालवीय 'अनामिका'


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