साहित्य चक्र

03 April 2020

कुछ पन्नों के बीच

जस्बात

कौन करता है तुझको भुला रखा है
मैंने दिल की किताब में
कुछ पन्नों के बीच
आज भी उस सूखे गुलाब के रूप में
तुम्हारी यादों को सजाए रखा है....
तुम देख ना पाओगे
कितनी भी कोशिश कर लो
देखोगे तो सिर्फ और सिर्फ
उन सूखे गुलाब की पंखुड़ियों को
क्योंकि तुमने मुझे भुला रखा है.....
महसूस ना कर पाओगे उस खुशबू को
जिसे जज्बात के इत्र में भिगोकर मैंने
आज भी संभाल रखा है...
तुम्हारे जाने के बाद
जिंदगी के हर तजुर्बे से
सीखने का सिलसिला
मैंने बनाए रखा है
खामोश निगाहों में
जो सपने सजाए थे कभी
आज भी संभाल रखा है....
दर्द की कंदराओं से
बह गया विषाद लेकिन
दिल की जमीन पर
नमी बनाए रखा है...
बातें कुछ रह गई अधूरी
संग गुजारी शामें भी रह गई अधूरी
एक आस है हो जाएंगी पूरी
शायद तुम लौट आओगे मेरे पास
इस उम्मीद से मैंने
निस्वार्थ प्रेम का दिया जलाए रखा है....
अब तो सांसे भी बोझल हो गई हैं
खुद को अनजान बनाए रखा है
खुश हो जाती हूं इस बात से
मैंने आज भी झूठी उम्मीद से
खुद को बहला रखा....

दीपमाला पांडेय


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