दिव्य भास्कर से प्रकाशित
धैर्य धारण वसुंधरा हूँ...!
गंगा की अविरल धारा सी
दृढ़ संकल्प परंपरा हूँ...!
संस्कार गढ़ की राजधानी
बन सहज व्यक्तित्त्व ले...!
समरसता मनभाव अंकित
विश्वास का बंधुत्व ले....!
अध्याय नव सृजन मंगल
है ह्रदय काव्य मान भक्ति....!
अन्याय के संग युद्ध करती
कलम की विधान शक्ति....!
मंगलकरण की भावना में
नित ईश अर्चन की विधि हूँ!
अंतर ह्रदय का स्नेह स्वर
मैं निधि हूँ.. मैं निधि हूँ..
मैं निधि हूँ !
निधि भार्गव मानवी
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