रिश्ता
कुछ तो, जाना पहचाना सा,
कुछ बिलकुल अनजाना सा,
कुछ कच्चा सा,कुछ पक्का सा
लगता फिर भी बहुत प्यारा सा।
कुछ खट्टा सा, कुछ मीठा सा,
कुछ तो अपने एहसासों का,
कुछ में तो बसती हैं जान,
कुछ तो लगता न्यारा सा।
कुछ खूब सूरत पलों का,
कुछ तन्हाई में यादों का,
कुछ तो अटूट दोस्ती का,
कुछ अपनी मनमस्ती का।
सबका स्थान अलग है,
सबका नाम निराला सा,
जीवन में हर रंग खिला,
अपनाना रिश्ता सच की बस्ती का।
प्रज्ञा मिश्रा
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