प्रेम में आकलन
कितना सुख, कितना दुःख
जब मिलन हो तब सुख
जब विरह हो तब दुःख
मिलन कुछ क्षण का है
और विरह अविचल है
युगों से सत्य प्रेम का
यही निर्णय रहा,
किन्तु ये प्रतीत होता है की
प्रेम का आकलन करना ही व्यर्थ है
प्रेम संसार से विपरीत इक उन्माद है
मानस में वियोग से उपझा एक अवसाद है
प्रेम के एक अंश में ही जीवन समर्थ है
प्रेम में सुख दुःख का आकलन ही व्यर्थ है।
मोहित दशोरा
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