साहित्य चक्र

26 April 2020

प्रकृति क्यों उदास है





प्रकृति क्यों उदास है 
मनुष्य क्यों निराश है
फैला रहा सर्वत्र 
ये कैसा अंधकार है

आजाद हैं जीव जंतु
सड़कों पर पसरा सन्नाटा है
मनुष्य के गाल पर
ये कुदरत का कैसा चांटा है

इक तरफ़  महामारी है
दूजी तरफ  मुंह फैलाए भुखमरी
दिहाड़ी पे गुज़र कर रहे मजदूरों
 की भी है दुविधाएं बड़ी

मुश्किल की इस घड़ी में
मनुष्य ही मनुष्य का सहारा है
इस वक्त भी कुछ दानव रूपी
मनुष्यों ने धर्म और राजनीति
का षड़यंत्र रचाया है

कुछ लापरवाही है मनुष्य की
कुछ कुदरत ने कहर ढाया है 
एक तुच्छ से वायरस की चपेट में
आज ये संसार सारा है

                                     भारती चौधरी


No comments:

Post a Comment