प्रकृति क्यों उदास है
मनुष्य क्यों निराश है
फैला रहा सर्वत्र
ये कैसा अंधकार है
आजाद हैं जीव जंतु
सड़कों पर पसरा सन्नाटा है
मनुष्य के गाल पर
ये कुदरत का कैसा चांटा है
इक तरफ़ महामारी है
दूजी तरफ मुंह फैलाए भुखमरी
दिहाड़ी पे गुज़र कर रहे मजदूरों
की भी है दुविधाएं बड़ी
मुश्किल की इस घड़ी में
मनुष्य ही मनुष्य का सहारा है
इस वक्त भी कुछ दानव रूपी
मनुष्यों ने धर्म और राजनीति
का षड़यंत्र रचाया है
कुछ लापरवाही है मनुष्य की
कुछ कुदरत ने कहर ढाया है
एक तुच्छ से वायरस की चपेट में
आज ये संसार सारा है
भारती चौधरी
No comments:
Post a Comment