साहित्य
जगत के "अनल" कवि का,
अधैर्य जब चक्रवात पाता है ।
तब "दिनकर "भी "दिनकर" से,
दीप्तिमान हो जाता है ।
"ओज" कवि "रश्मिरथी "पर,
जब-जब हुंकार लगाता है ।
"आत्मा की आंखें "
कैसे ना खुलेगी ।
पत्थर भी पानी हो जाता है।
साहित्य
जगत के "अनल "कवि का।
"भारतीय संस्कृति के चार अध्याय"
रच कर ,
भारत का विश्व में नाम किया।
"कुरुक्षेत्र "रच कर ,
आधुनिक गीता का निर्माण किया ।
"शुद्ध कविता की खोज" में निकला ।
"उजली आग का स्वाद" चखा।
रेणुका ,उर्वशी ,रसवंती ,
यशोधरा का द्वंद गीत लिखा ।
सपना देख के
"सूरज के विवाह" का ।
"हारे को हरी नाम "भज कर,
अंतिम इतिहास रचा ।
कैसे भूल सकता ।
साहित्य दिनकर को ,
उसने जो इतिहास रचा।
"अर्धनारीश्वर "की सार्थकता को,
साहित्य वन में छोड़ चला ।
साहित्य भूला नहीं सकता ।
ज्ञान, पदमभूषण ,
भूदेव के अधिकारी को ।
सिमरिया की माटी को ,
उस "दिनकर "
काव्य अवतारी को।
प्रीति शर्मा 'असीम'
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