साहित्य चक्र

26 April 2020

आदमी और पेड़





देखो पेड़ों को तो देखो ,
खड़े हैं अपने बलबूते पर ।
आदमी का रौब है केवल ,
कोट - पेंट , महंगे जूते पर ।।

देखो इनकी छाया को ,
जो देती हमें सहारा है ।
बाहर से मीठा है आदमी ,
भीतर से तो खारा है ।।

देखो मीठे फलों को देखो ,
जो सबकी भूख मिटाते हैं ।
आदमी के भरोसे रहकर ,
कुछ भूख से ही मिट जाते हैं ।।

देखो इनके भोलेपन को,
हमसे ना कुछ कहते हैं ।
गला आदमी काट रहा ,
पर मौन खड़े ये रहते हैं ।।

सीख लो, पेड़ों से जीना ,
वरना सब मारे जाओगे ।
अंत समय में इनके बूते ,
तुम सब राख हो जाओगे ।।

झुक जाते हैं पेड़ सहज ही ,
इनका मंत्र तुम जान लो ।
“शेलू ” तुम भी रहो प्रेम से ,
 बात पेड़ों की मान लो !!

                                           सुनील पोरवाल 'शेलू'


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