बटुयें में दुख भरे हुए हैं
भाव रहित निस्सार
चिंताओं के मस्तक पर हैं
अवसादी आसार
ज़ख़्मेवबा का थैला देकर
चला गया है बीस
कैसे इसको ढो पाएगा
सोच रहा इक्कीस
प्रश्न हजारों मुंँह बाये हैं
अर्थनीति बेज़ार
चिंताओं के मस्तक पर हैं
अवसादी आसार
दस्तक देता नया वर्ष है
लेकर नये क़यास
सहरा में ओएसिस का क्यों
करा रहे अहसास
पुष्प समर्पित करके देते
आंँसू 'ज्योति' हज़ार
चिंताओं के मस्तक पर हैं
अवसादी आसार
इच्छाएँ बोझिल हुईं और
हूईं मुस्कान उदास
ख़ुशियों की साज़िश पर लेटी
अरमानों की लाश
प्रजातंत्र में ज़ंग लगी है
सिस्टम है लाचार
चिंताओं के मस्तक पर हैं
अवसादी आसार।
ज्योति जैन 'ज्योति'
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