साहित्य चक्र

11 April 2021

#ताकि_कठिन_दौर_में_भी_मौहब्बत_जिन्दा_रहे


तबलीगी-ज़मात के जमातियों से जुड़ीं तमाम खबरें जिस तरह से मीडिया में प्रसारित हो रहीं हैं, उस तरह से विचारणीय है कि अतिवादी धार्मिक आस्था देश में कोबिड-19 के खिलाफ चल रही लड़ाई को किस हद तक कमजोर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। तबलीगी जमात से जुड़े कुछ कोरोना संक्रमित जिस तरह का व्यवहार कर स्वास्थ्य और सुरक्षा कर्मियों के लिये समस्या खड़ी कर रहे हैं, निश्चित रूप से इनकी आलोचना होनी चाहिए और मीडिया-सोशल मीडिया जैसे विभिन्न मंचों पर इनकी आलोचना हो भी रही है। लेकिन इस स्थिति ने देश में कोरोना संक्रमण के वैश्विक संकट के बीच एक तरह के साम्प्रदायिक माहौल की सुगबुगाहट भी पैदा कर दी है।



इस स्थिति में देश में सामाजिक समरसता का माहौल बना रहे, इसके लिये समाज के सबसे अग्रणी और शिक्षित वर्ग को अधिक समझदारी के साथ सोचना ही होगा। सबसे पहले तो यह जान लेना आवश्यक है कि कोरोना वायरस त्वरित और तीव्र संक्रमण के कारण ही अधिक खतरनाक है और यह कोई जादुई पुड़िया वाला वायरस नहीं है जो जमाती अपनी जेब में रखकर घूम सकते हैं और वक्त आने पर अपने दुश्मनों पर छिड़क सकते हैं, बल्कि सीधी बात है कि सबसे पहले किसी भी संक्रमित को इस संक्रमण को स्वयं ही झेलना होगा। ऐसा कतई सम्भव नहीं है कि वे इसे हिन्दुओं में फैला दें और वे स्वयं, उनका परिवार और उनका समुदाय इससे बचा रह जाये। इसलिए यह समझना जरूरी है कि आप कोरोना संकट टलने तक इनसे उचित दूरी बनाकर भी इस खतरे को टाल सकते हैं।

विचारणीय ये भी है कि ये सब जमाती उनके मजहबी केंद्र पर एकत्रित थे। ऐसे में इन पर फोकस होने के कारण इनके और इनसे सम्बन्धित संदिग्धों के रैपिड टेस्ट्स हो रहे हैं। ज़ाहिर है जहाँ फोकस किया जाएगा पॉजिटिव केसेस की संख्या वहीं से ज़्यादा मिलेगी। याद रखिये लॉकडाउन से घबराई हुई लाखों की संख्या में जो पब्लिक पलायन करके देश के तमाम हिस्सों में पहुँची है, उनमें भी तमाम पॉजिटिव केसेस ऐसे हो सकते हैं, जो किसी तरह छुप-छुपा कर अपने समुदाय में पहुंच चुके हैं और इस वायरस के वाहक बने चुके हैं। तबलीगी जमातियों के अलावा पलायन करके घर पहुंचे इन लोगों के प्रति भी संजीदा रहने की आवश्यकता है। ध्यान रहे कि जनसंख्या के सापेक्ष समुचित संख्या में टेस्ट हम अभी भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में घरों में रहकर लोगों के सम्पर्क से दूर रहना ही बेहतर विकल्प है।

इस दौरान सोशल मीडिया पर भी तमाम ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जो प्रमाणिक नहीं हैं, फर्जी हैं। हाल ही में पुलिस पर थूकने वाले एक मुस्लिम युवक का वीडियो वायरल हुआ, जिसको कोरोना संक्रमित बताकर प्रचारित किया जा रहा था, बाद में तमाम मीडिया चैनल्स ने इसका सच बताते हुए स्पष्ट किया कि यह एक पुराना वीडियो था, कोरोना से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी तरह रीवा (मध्यप्रदेश) के एक पुजारी को एक मुस्लिम पुलिस अफसर द्वारा पीटने से सम्बन्धित एक वीडियो वायरल हुआ और मुस्लिम पुलिस अफसर की आलोचना की जाने लगी, जबकि बाद में मीडिया द्वारा की गई छानबीन से स्पष्ट हुआ कि पुलिस अफसर का नाम राज कुमार मिश्रा है, पुलिस अफसर के रवैये के कारण उसको लाइन हाजिर भी किया गया। कुल मिलाकर यह समझना बेहद महत्वपूर्ण और ज़रूरी है कि तबलीगी जमात के कुछ धर्मान्धों के कारण फैली समस्या का आरोप हम किसी विशिष्ट समुदाय पर सामूहिक रूप से मढ़ दें, यह संकट के इस दौर में बेहद निराशाजनक स्थिति है। हम तबलीगी जमात में बैठे किसी ज़ाकिर का बदला उन डॉ. ज़ाकिर से लें जो हमारे बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, हम तबलीगी जमात में बैठे किसी अफजाल का बदला अपने उस साथी अफजाल से लें, जो हर दुख दर्द में हमारे कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहने को तैयार हो, हम तबलीगी जमात में बैठे किसी नाज़िम का बदला अपने उस नाज़िम हज्जाम से लें जिसने बीमारी के वक्त भी हमारे बुजुर्गों की दाढ़ी और बाल कभी बढ़ने नहीं दिए, घर आकर अपनी सेवाएं प्रदान कीं, हम तबलीगी जमात में बैठे किसी रहमान का बदला उन अब्दुल रहमान नामक शिक्षक से लें जो हमारे बच्चों की शिक्षा को लेकर एक आदर्श शिक्षक की तरह ही चिंतित रहते हैं, हम तबलीगी जमात में बैठे किसी सुल्तान का बदला उस सुल्तान सब्जी वाले के खिलाफ नफरत फ़ैलाकर लें जो हर शाम हमें छाँट-छाँटकर उम्दा सब्जी उपलब्ध कराता है, हम तबलीगी जमात से सम्बन्धित किसी मौहम्मद रफी का बदला उन रफी साहब से लें, जिनका “ओ दुनिया के रखवाले“ सुनकर लोग आध्यात्मिकता में लीन होते हैं, ये बिल्कुल ज़ायज़ नहीं लगता। वैश्विक संकट के इस दौर में यह समझना भी जरूरी है कि इस संकट के गुजरने के बाद हमें और हमारी पीढ़ी को जिस समाज में रहना है, वहाँ रहने के लिए सामाजिक समरसता भी बेहद महत्वपूर्ण है। जो लोग कोरोना से लड़ाई को किसी भी तरह से कमजोर बनाने का कार्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य कर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे हैं, असहयोग कर रहे हैं, निश्चित रूप से उनकी आलोचना भी हो और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, लेकिन आलोचना के बीच यह ध्यान रखना भी बेहद आवश्यक है कि एक बड़े संकट के बीच हम साम्प्रदायिकता नामक एक सबसे खतरनाक वायरस को विस्तार देने में कहीं कोई महत्वपूर्ण भूमिका तो नहीं निभा रहे? किसी नफरती संदेश को वायरल करने में वाहक तो नहीं बन रहे ?

साथ ही मुस्लिम समुदाय को भी यह समझना बेहद आवश्यक है कि भले ही चन्द लोग मरकज़ की घटना के कारण नफ़रत फैलाने का कार्य कर रहे हों, लेकिन सभी हिन्दू उनके समुदाय का अहित ही चाहते हों। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हिन्दू समुदाय से जुड़े तमाम प्रशासनिक, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं स्वच्छता कर्मी दिन-रात आप और आपके समाज को स्वस्थ और सुरक्षित रखने हेतु प्रतिबद्धता के साथ लगे हुए हैं।

ध्यान रहे कि देश के प्रधानमंत्री ने भी “एकता“ प्रदर्शित करने हेतु ही हाल ही में दिये जलाने का आवाहन किया था और एकता केवल दिये जलाकर ही प्रदर्शित नहीं होगी, दिये जलाने के साथ-साथ हमें नफ़रत को हवा देने से भी बचना ही होगा। नफ़रत की हवा के रहते “एकता“ के दीपक जलते रहना बिल्कुल सम्भव नहीं है।

पंकज यादव


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