साहित्य चक्र

04 April 2021

"रिश्ते"



जीने का एक सलीका है, रिश्तों का ताना बाना।
बिन रिश्ते, नहीं है कोई अपना और बेगाना।

रिश्तों से हैं बंधे हुए, जानवर भी इंसान से।
बिन रिश्ते हो जाते हैं, इंसान भी अनजान से।

मां का एक प्यारा रिश्ता, है अपनी संतान से।
भक्त जुड़ा एक रिश्ते से, अपने भगवान से।

भाई भाई संगी साथी, सखी सहेली, बहन नवेली।
पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका या हो कोई हमजोली।

नौकर का मालिक से रिश्ता, जुड़ा हुआ है काम से।
मोल भाव सब रिश्तों का जुड़ा जैसे इंसान से।

प्रेम की कभी सौगात हैं रिश्ते
नफरत का कभी सैलाब हैं रिश्ते।

कडुए हैं नीम सरीखे,
तो कभी मिश्री की मिठास हैं रिश्ते।

                                      अर्चना त्यागी

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