साहित्य चक्र

18 April 2021

खोज



तुम शिलालेख , पाषाणो में
में  भगवान ढूंढते हो।
तुम जीवन भर दरबदर 
भगवान ढूंढते हो।
 तुम लंबी लंबी यात्राएं
 कर जाते हो ,
 वीआईपी दर्शन के नाम पर 
तुम सबसे पहले, 
स्वयं का हक जताते हो।
रत्ती भर भी कहां तुम 
भगवान को पाते हो।
 पत्थर को पूज कर तुम,
  लाचार असहाय के सामने , 
  खुद पत्थर हो जाते हो।
 पुरोहितों को  मालामाल कर,
  किसी गरीब का तन,
 कहां तुम ढक पाते हो।
तुम्हारी आंखे कहा देख पाती है
उसके असली रूप को ,
कभी वो बच्चे की निश्छल 
हँसी में मुस्कुराता है।
कभी वो रूप बदल बदल कर
 तुम्हारे सामने आता है 
मगर इस भागमभाग जिंदगी में
 कहां तुम इंसानो में 
  भगवान देख पाते हो ?

                                        कमल राठौर साहिल 


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