साहित्य चक्र

01 April 2021

अपना राजस्थान लिखूँ



सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ
जिसके कारण जग ने गायी गाथा वो पहचान लिखूँ


इस माटी के कण-कण में बन रूह समा जाऊँ तल तक
अधरों पर हो राजपुताना जीवन के अंतिम पल तक
धोरों पर इठलाऊँ, झूमू, दिल के सब अरमान लिखूँ
सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ


ढोला -सा प्रियतम , मारू-सी प्रिया अहा अनुपम जोड़ी
देख चल पड़ी क़लम अचानक, ना लिखने की जिद छोड़ी
ऐसी अद्भुत प्रेमकथा का घूम- घूम गुणगान लिखूँ
सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ


महावीर हम्मीर हठी का किस्सा फिर दुहराऊं मैं
चेतक की टापों के संग राणा का शौर्य सुनाऊँ मैं
सांगा के अस्सी घावों का दर्द नहीं, यशगान लिखूँ
सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ


खानपान , चटकीले परिधानों की दुनिया दीवानी
कूप नदी में मिले न चाहे, आँखों मे मिलता पानी
तरु- रक्षा में मिटी अमृता कितना कहो बखान लिखूँ
सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ

सदा रेत की लहरें गंगा माँ की याद दिलाती हैं
चिंकारा की भोली आँखें आंखों में बस जाती हैं
विषय न चुकता शब्द न रुकते, कब अंतिम सोपान लिखूँ
सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ
जिसके कारण जग ने गायी गाथा वो पहचान लिखूँ।

                                        ममता शर्मा "अंचल"


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