शैली- लेख, यात्रा वृतांत
बुंदेलखंड भारत का मध्य भाग है ,जो मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश मैं पड़ता है, यहां की जलवायु 6 महीने गरम चार महीने सामान्य ,एवं 2 से 3 महीने ठंडी रहती है।
अगर आप अक्टूबर से मार्च के बीच बुंदेलखंड दर्शन के लिए निकलते हैं ,तो यह समय मौसम के अनुकूल रहेगा। बुंदेलखंड अपने अद्वितीय शिल्पकार शौर्य गाथाओं के लिए पहचाना जाता है।
झाँसी
खूब लड़ी मर्दानी ,वह तो झांसी वाली रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह ,हमने सुनी कहानी थी।
जी हां इसी पंक्ति के साथ शुरुआत होती है, बुंदेलखंड के इतिहास की, यह पंक्तियां लिखी गई थी, सुश्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा झांसी की उस वीरानी मर्दानी के लिए जो बुंदेलखंड की आन, बान, शान और झांसी के सिंहासन का ताज थी। रानी लक्ष्मीबाई के लिए।
सन 1857 में सिर्फ 23 वर्ष की छोटी सी आयु में ,अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।
तो बुंदेलखंड की यात्रा की शुरुआत होती है। मर्दानी के शहर झांसी से जो ग्वालियर से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश में पड़ता है। यहां पर मुख्य दर्शनीय स्थल है झांसी का किला।
जो पुनः रानी की वीरता की याद दिलाता है। यहां पर दिलचस्प फोटोग्राफी करके, एवं महल में लाइट एंड साउंड प्रोग्राम को देखकर शौर्य गाथाओं को याद किया जा सकता हैं। यहां के महल की दीवारें एक नई स्फूर्ति का एहसास कराती हुई प्रतीत होती है। अब तो झांसी को बुंदेलखंड की फिल्म नगरी के नाम से भी जाना जाने लगा है ।यहां पर कई नामी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। जिनमें कंगना रनौत अभिनीत फिल्म रिवॉल्वर रानी, मणिकर्णिका, आलिया भट्ट की, बद्रीनाथ की दुल्हनियां बिपासा वासु की सिंगुलेरिटी ।
एवं लगभग 90% तक पूरी हो चुकी रानी मुखर्जी की फिल्म मर्दानी के बहुत सारे सीन झांसी में शूट किए गए हैं। जिनमें आप वहां की सादगी और कल्चर को देख सकते हैं।
ओरछा
अब आगे बढ़ते हैं लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर मध्यप्रदेश की गंगा कही जाने वाली बेतवा नदी के तट पर स्थित ओरछा के लिए। यह अपने आकर्षक स्थलों के लिए जाना जाता है। यहां पर विदेशी पर्यटकों की अच्छी तादाद देखने को मिलती रहती है।
इसका इतिहास आठवीं सदी से शुरू होता है।जब सम्राट मिहिर भोज ने इसकी स्थापना की थी यहां के प्रसिद्ध स्थल चार महल हैं।
जिनमें-
★ जहांगीर महल
★ शीश महल
★ परवीन महल एवं
★ राज महल है
जो अपनी सुंदरता के साथ ही कई कहानियां समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक कहानी है हरदौल की जो सन 1627- 34 के राज्य काल की है। दरअसल मुगलों की साजिशों के चलते, राजा को शक हो गया था कि उसकी रानी का उसके भाई हरदोल से संबंध है। जबकि हरदौल ने हमेशा उनमें अपनी मां को ही देखा था । लिहाजा राजा ने रानी से हरदौल को जहर देने के लिए कहा पर रानी द्वारा ऐसा ना करने पर ,हरदौल ने स्वयं ही जहर पी लिया एवं त्याग की नई मिसाल कायम की।
यहां पर-
★ राम राजा का मंदिर
★ ओरछा पैलेस
★ चतुर्भुज मंदिर
★ एवं लक्ष्मी मंदिर भी।
अपनी सुंदर शिल्पकारी के लिए जाने जाते हैं।
खजुराहो डांस फेस्टिवल।
अब आगे बढ़ते हैं, पूर्व झांसी से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के लिए , यह हिंदू एवं जैन स्मारकों का एक समूह है, यहां पर 12 महीनों विदेशी पर्यटकों से रौनक लगी रहती है। इनको देखते हुए यहां पर फाइव स्टार ,एवं 3 स्टार होटल भी बनवाए गए। यहां दिल्ली मुंबई एवं इंदौर से हवाई मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां का हवाई अड्डा मध्य प्रदेश के प्रमुख हवाई अड्डों में से एक है । झांसी एवं ग्वालियर से रेल सुविधा भी उपलब्ध है।
अगर आप राजधानी से जाना चाहते हैं तो महामना एक्सप्रेस एक अच्छा विकल्प हो सकती है। यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में ★ कंदारिया महादेव
★ देवी जगदंबा
★ दुलादेव मंदिर आदि हैं।
यह स्मारक समूह यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का मानचित्र गिना जाता है।
नगारा वास्तु कला से स्थापित मंदिरों में अधिकतर मूर्तियां कामुक कला की है, जो लगभग 20 वर्ग किलोमीटर के घेराव में फैले हुए हैं। इन मंदिरों का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में चंदेलो ने करवाया था। यहां पर कुल 84 मंदिर हैं जो काम सूत्र के अनुसार 84 आसनों के लिए जाने जाते हैं। लोगों की विचारधारा थी कि मंदिरों में इस तरह की नग्न मूर्तियां बनवाने का क्या औचित्य था ?
इसके अनेक तर्क दिए, गये उनमें से एक यह भी दिया जाता है कि उस काल में बौद्ध धर्म के प्रभाव के चलते अधिकतर युवा गृहस्थ धर्म से विमुख होकर ,संन्यास की ओर अग्रसर हो रहे थे। अतः उन्हें आसक्त करने के लिए देशभर में इस तरह के मंदिर बनवाए गए थे जिस से ग्रहस्थ धर्म में लोगों का रुझान बड़े एवं वह उसके महत्व को समझें । खजुराहो बुंदेलखंड का मुख्य पर्यटन क्षेत्र है।
ग्वालियर से आप उदयपुर इंटरसिटी से सीधे खजुराहो पहुंच सकते हैं।
आहार जी
खजुराहो घूमने के बाद वहां से सिर्फ, 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रमुख जैन तीर्थ आहार जी। जरूर देखें लगभग 133 वर्ष पूर्व सन 1884 तक आहार जी रेत के टीले में तब्दील था।
जब यहाँ खुदाई कार्य प्रारंभ हुआ तो,11वी से 15वीं शताब्दी तक की सैकड़ों मूर्तियां प्राप्त हुई । इन सभी को संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। शांतिनाथ जी की18 फीट ऊंची मूर्ति, 21 फीट ऊंचे पाषाण शिलालेख एवं अन्य 12, 14, 15 फीट की मूर्तियां अपनी भव्यता को प्रदर्शित करती हैं।
देरी
छतरपुर से आहार जी जाते हुए बीच रास्ते में ही पड़ता है। छोटा सा गांव देरी, जो छतरपुर से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर टीकमगढ़ जिले में स्थित है।
यहां पर प्रसिद्ध कालिका माई मंदिर है जो अपनी प्राचीन परंपरा और विश्वास के लिए जाना जाता है। यहां पर नवरात्रि के दिनों में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिस प्रशासन के भी इंतजाम रहते हैं। आज भी लोग मां के दरबार में नंगे पांव ही पैदल यात्रा करते हुए आते हैं और वहां पर स्थित तालाब में स्नान करके 400 सीढ़ियां चढ़कर मां को जल चढ़ाते हैं। एक किवदंती के अनुसार लगभग 500 साल पहले मां का दरबार और भी ऊंचाई पर था। परंतु एक वृद्धा द्वारा प्रार्थना करने पर मां ने एक ही रात्रि में 50 से 60 फीट नीचे पत्थरों को काटते हुए गुफा में अपना स्थान ग्रहण किया।
मां जिस रास्ते नीचे आई ,वह प्रकाशमई मार्ग, आज भी पत्थरों के बीच आप देख सकते हैं।
धन्यवाद
रिया श्री
No comments:
Post a Comment