साहित्य चक्र

25 April 2021

अपनों के बीच , खुद को खोजती नारी




जिन्दगी कहां से कहां ले आती है
कभी नाजों से पली  
दुनिया के हर रंजो गम से दूर
 स्वच्छंद इठलाती हुई
 हर किसी की खुशियों को संजोए 
आज अपने ही अस्तित्व को 
खोज रही है नारी
दिखावे की जिंदगी,
दिखावे के रिश्ते,
ताउम्र चलते हैं साथ उसके
सब के मन की कर ले  
तो सही है
वरना कुछ पल अपने लिए जी ले
या फिर सही - गलत का स्मरण करा दे
तो औकात दिखा दी जाती है उसकी
जैसे कि कोई वजूद ही न हो उसका
शास्त्र कहते हैं" यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमंते देवता "
पर क्या सच में नारी पूजनीय मानी जाती है ????
 शायद ही
यहां तो नारी ही नारी की दुश्मन बनी बैठी है
समाज के अन्य वर्ग से अपेक्षा कैसी।
कुछ अच्छा हो तो सबका भाग्य
और कुछ बुरा हो जाए तो .....
तो सिर्फ और सिर्फ नारी को उलाहने
ये है सच्ची तस्वीर हमारे समाज की
शायद सहमत न हों कई लोग
पर गौर से देखिए आस-पास अपने
तस्वीरों का रुख भी कुछ ऐसा ही होगा
जहां दिखावे की जिंदगी तो बहुत होगी
पर सच्चाई से न होगा कोई दूर-दूर तक वास्ता।
सच में अपनों के बीच
खुद को कभी-कभी खोजती है नारी।

                                                   तनूजा पंत

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