साहित्य चक्र

11 April 2021

शब्द


शब्दों मत रुको,
कुछ कहो,
निरर्थक सा,
मत पड़े रहो।
शिला सी,
अल्हड़ नदी सा बहो।

वक्त के अनुसार बदलो,
अंदाजे बयां कुछ नया हो;
हाँ, तेवर रखो;
वो ही,
थे पहले जो।

अब लोगों का,
बदल गया सलीका,
कहने का तौर तरीका;
कहते कुछ और,
अर्थ कुछ और;
तुम भी पकड़ कर,
रखो अपना छोर।

समझा करो,
जरा सोच लो;
सोचने में क्या जाता है।
हलंत लगा दो,
लहजा लिए बिगड़,
जाता है।

हैं शब्द,
पहले तोलो;
फिर बोलो।।


                              राजेश 'ललित'


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