शब्दों मत रुको,
कुछ कहो,
निरर्थक सा,
मत पड़े रहो।
शिला सी,
अल्हड़ नदी सा बहो।
वक्त के अनुसार बदलो,
अंदाजे बयां कुछ नया हो;
हाँ, तेवर रखो;
वो ही,
थे पहले जो।
अब लोगों का,
बदल गया सलीका,
कहने का तौर तरीका;
कहते कुछ और,
अर्थ कुछ और;
तुम भी पकड़ कर,
रखो अपना छोर।
समझा करो,
जरा सोच लो;
सोचने में क्या जाता है।
हलंत लगा दो,
लहजा लिए बिगड़,
जाता है।
हैं शब्द,
पहले तोलो;
फिर बोलो।।
राजेश 'ललित'
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