दिल में आज फिर घुटन सी है
पलकें भी कुछ नम सी है
सूरज भी बिछड़ता लग रहा है किरण से
हवा भी जोरों से गरमाई है
शायद अम्मा को मेरी याद आयी है ।
एक निवाला भी हाथों में भारी सा है
घर बहुत बहुत खाली सा है
कुछ अधूरा सा थाली में है
पानी भी कम सुराही में है
चूल्हे की आग भी शरमाई है
शायद अम्मा को मेरी याद आयी है।
...
पौधे हैं सूखे,अटरिया भी खाली
तुलसी में ना है कुमकुम की लाली
मुरझायें हैं फूल,सूखी है डाली
वर्षों की प्यास क्यारी के कटान से बाहर आई है
शायद अम्मा को मेरी याद आयी है।
नेहा अपराजिता
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