साहित्य चक्र

11 April 2021

प्रकृति की हर शय में नज़र आता हूँ



मैं रंग हूँ जिस रंग में ढालोगे ढल जाऊंगा
चेहरे पर सबके खुशियां मैं ले आऊंगा
लहु में दिखता हूँ तो लाल बन जाता हूँ
होली में खेलो तो गुलाल नज़र आता हूँ
नारी की बिंदिया में भी लाल नज़र आता हूँ
मांग उसकी मैं लाल रंग से सजाता हूँ।

गुलाब के फूल में देखो मैं
लाल पीला सफेद गुलाबी नज़र आता हूं
भारत की आन बान और शान तिरंगे में
सफेद हरा और केसरिया बन लहराता हूँ

पेड़ पौधों की पत्तियों में मैं हरा हूँ
उमंग और खुशियों से हमेशा भरा हूँ
मखमली दूब में मैं सबको भाता हूँ
सबकी आंखों को सुहाता हूँ

इंद्रधनुष में सात रंग बन जाता हूँ
जीवन में सबकी खुशियां लाता हूँ
किसी को मैं लाल अच्छा लगता हू
दूध में सफेद नज़र आता हूँ

प्रकृति की हर शय में
बस मैं ही नज़र आता हूँ

                                  रवींद्र कुमार शर्मा


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