साहित्य चक्र

25 April 2021

स्त्री द्वारा ओढ़ा हुआ पुरुषत्व की कहानी



बदल जाने की फितरत थी उसकी
रगों में बसा उसका हुनर बोलता था

गलत सही की परख कैसे समझता
खुद ही जब गलतियों से लिपटा हुआ था।

दिल में कुछ दिमाग में कुछ और बातें लेकर 
बिना नजर मिलाए वो बातें किया करता था 

हम आपका सब कुछ छिनते जाएं
मगर आप मुस्कुरा कर देते ही जाइएगा

आपके घाव नासूर ही न बनते जाएं 
मगर अपना इलाज हमसे ही करवाइएगा 

ना हाथ पकड़ेंगे ना साथ निभाने आयेंगे 
मगर आप तड़पयिगा तो सिर्फ हमें ढुंढिंएगा

हम आप पर सितम ढाते ही जाएं
मगर आप हमसे ना दगा किजीएगा

ये दुनिया अगर दुनिया जैसी कसूरवार है 
तो आप भी गुनहगार कहलाइएगा

मौत सामने हो तो मर जायिएगा
मगर आप इंसान नहीं खुदा ही बने रहिएगा ।।

                                                
                        रानी यादव


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