मौन अध्यापक,
मुखर आज तख्त है
वेद की ऋचाएं जिसे कंटस्थ हैं
दीपक की लौ आज मन्द है
जबकि अंधकार स्वछंद है
दिशा दिखाई है जिसने मानवता को
उसको ही चलना सिखलाया जा रहा
कैसे दे दिशा इस देश के भविष्य को
ये भी उसको अब बतलाया जा रहा।
सीखा है जिन्दगी को जिससे
उससे आज कह रहे,
तुममें सब रीता है
कहता है अर्जुन अब
खोखली सब गीता है।
अब तो शासन की बागडोर
दुर्योधन के हाथ है
युधिष्ठिर हुआ मौन जब
सत्ता को शकुनी का साथ है।
गुरु की महिमा आज
धूल में मिल रही
द्रोण की कमान
आज हाथों से गिर रही।
कौन है आज
जो फिर हुंकारेगा
धूल - धूसरित हो रही
संस्कृति को संवारेगा।
प्रो. प्रभात द्विवेदी
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