मैं लिखता हूं अपने लिए...!
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लोग मेरे लिखे हुए
को क्या सोचते हैं और उसे कैसे देखते हैं ?
मैं स्वतंत्र हूं इसलिए अपने मन की हर बात लिखता हूं।
लोगों के कहने पर चलूंगा तो लोग मेरे होने
पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देंगे।
भारतीय समाज में एक दूसरे से जलने
और पकने की बहुत पुरानी बीमारी है।
इतना ही नहीं बल्कि फ्री में भी ज्ञान
बांटने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
यह वही लोग हैं जो अपने घर तो नहीं देखते,
मगर दूसरे के घर में जरूर कमियां ढूंढते फिरते रहते हैं।
इसलिए मैं लिखता हूं अपने लिए..!
कभी-कभी अपने पुराने विचारों को पढ़ने
का मन करता हूं तो अपने ही फेसबुक वॉल
पर आकर पढ़ना शुरू कर देता हूं।
क्या बुरा है अपनी पुरानी लेखनी को पढ़ने में..?
मत आओ मेरी वॉल पर मुझे उन लोगों की
जरूरत नहीं है जो जलने और पकने वाले हैं।
मैं अन्य लोगों से भी कहना चाहता हूं
आप अपने लिए लिखो...
किसी से आशा मत करो कि वह आपको पढ़ेगा।
जिसे जरूरत होगी वह खुद आएगा व
आपको बारीकी से पढ़ेगा भी और समझेगा भी।
दीप 'खिमुली'
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