साहित्य चक्र

24 April 2021

जनदर्द - आजकल के नेता


दिन में रैली में भीड़ जमाकर 
पाार्टी का पावर दिखलाते हैं
रात्रि लॉकडाउन लगाकर
मास्क व सोसलडिस्टेंस चिल्लाते हैं 
आजकल के नेता यही कहाते हैं

रैली में लाखों-करोड़ों उड़ाकर
बेरोजगारों को कर्ज की योजना बताते हैं

महामारी में भी जिनके चुनाव रद्द नहीं होते पर
बेरोजगारों की परीक्षाएं टलीं, रिजल्ट वर्षों से 
लटके व भर्तियां कोर्ट में फंसी भरमा रहीं हैं 
बेरोजगारों की सफेद बालों में सिसकतीं श्वासें
ओवरएज मंथ पर टिकी कराह रहीं हैं... 

खुद हवाई जहाज में घूमते जनता को मूर्ख बनाते हैं 
मंच पर खड़े होकर नशामुक्ति की करते बातें
प्रधानी आदि चुनावों में यही शराब हैं बंटवाते

जो कॉलेज का टॉपर वह अधिकारी सेवा में खड़े हैं
जो पढ़ाई में थे जीरो वह आज प्रत्याशी बने खड़े हैं

किससे रोना रोयें इस दिवास्वप्न सी अंधेरनगरी का
न्यायालय में जज के पास अयोग्य पेशकार बैठता है
और एक एडवोकेट नीचे हाथ जोड़ते खड़े रहता है
न्यायालय में भी होते है अध्यक्ष महामंत्री के चुनाव 
विडम्बना जज का परिवारी ही बनता है जज वो भी बिना चुनाव....!

भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर क्या न्यायालय जाते हो
जिसे न्याय का मंदिर कहते हो वहां मुकदमें 
अगले जन्म तक चलते हैं जिनमें रिश्वत से 
सिर्फ़ तारीखों की पुड़ियां बांटी जाती हैं...

जनता को धर्मों में लड़ाकर रोजगार विकास से 
भटकाकर सियासत की मलाई खाने की आदत पुरानी है.. 
स्वंय हर धर्म को साथ मिलाकर वोट बैंक बढ़ाने की जुगाड़ें निरालीं हैं।

इनकी दोहरी नीति बड़ी विचित्र है 
मंच पर खड़े होकर जनसंख्या नियंत्रण चिल्लाते 
फिर वोट के कारण शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दिलवाते....

आखिर! कोरोना महामारी ने नेताओं की 
असली सूरत दिखला दी....
जनता के जीवन से ज्यादा चुनाव इन्हें है प्यारा
चाहे कोई भूखा भटके या मर जाये वो प्यासा

करोड़ों चुनाव प्रचार में फूंकते पर हास्पिटल में 
बैड और ऑक्सीजन की कमी इन्हें न सताती है...
बड़े - बड़े अस्पतालों में भर्ती की पर्ची
बिना नेता के सिफारिश के न कट पाती है...

जनता के टैक्स के पैसे से चुनाव प्रचार 
टीवी विज्ञापन व विधायक खरीदें जाते हैं.. 
सारे फंडे केवल जनता को मूर्ख बनाने हेतु प्रपंचरूप गढ़े सब जाते हैं..

जनता सबकुछ सहती फिर भी वोट डालने जाती है
पार्टी पर पार्टी बदल जातीं पर जनदर्द वही जमा रहता
नेता जीतकर सालभर में ही करोड़-अरब पति बन जाता...!

नेताओं को सिर्फ़ चुनाव जीतने से मतलब है.. 
विडम्बना चुनावआयोग, कोर्ट भी इनके आगें नतमस्तक है....!

आम जनता के परिवारों को केवल भगवान का सहारा है...
बस अब वोट मांगने न आना... 
ओ! जनता की उम्मीदों को रौंदकर, जीवन हरने वाले।


                              आकांक्षा सक्सेना


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