साहित्य चक्र

09 April 2021

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना कैसे हुई ?

1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार हुई थी। आपकी जानकारी के लिए बता दूं रिजर्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय प्रारंभ में कोलकाता में स्थापित था। जिसके बाद इसे 1937 में स्थाई रूप से मुंबई में स्थानांतरित किया गया। केंद्रीय कार्यालय वह कार्यालय को बोलते हैं- जहां आरबीआई के गवर्नर बैठते हैं और जहां से नीति निर्धारित होती हैं।


भारतीय रिजर्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल्य कार्य कुछ इस प्रकार वर्णित किए गए हैं- भारत में मौद्रिक स्थिरता प्राप्त करने की दृष्टि से बैंक नोटों के निर्गम को विनियमित करना और प्रारक्षित निधि को बनाए रखना, सामान्य रूप से देश के हित में मुद्रा और ऋण प्रणाली संचालित करना, अत्यधिक जटिल अर्थव्यवस्था की चुनौती से निपटने के लिए आधुनिक मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क रखना व वृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।

रिजर्व बैंक का कामकाज केंद्रीय निर्देशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड को नियुक्त करती है। नियुक्ति 4 साल के लिए होती है, जिसमें पूर्ण कालीन एक गवर्नर और अधिकतम 4 उप गवर्नर हो सकते हैं।

वर्तमान समय में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास जी हैं और बीपी कानूनगो, महेश कुमार जैन, एमडी पात्र, एम राजेश्वर राव उप गवर्नर है। वैसे भारतीय रिजर्व बैंक के स्थानीय बोर्ड देश के चार क्षेत्रों में है- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और नई दिल्ली।

रिजर्व बैंक ने अपना इतिहास चार खंडों में प्रकाशित किया है। पहला 1935 से 1951 जो 1970 में प्रकाशित हुआ था। इसमें भारत में एक केंद्रीय बैंक की स्थापना के लिए की गई पहल का विवरण दिया गया है। द्वितीय विश्व युद्ध और स्वतंत्रता के बाद की गई चुनौतियां पर भी प्रकाश डाला गया है। दूसरा खंड 1951 से 1967 तक की अवधि को माना गया है, जिसे 1998 में प्रकाशित किया गया था। इस अवधि में भारत में योजनाबद्ध तरीके से आर्थिक विकास के युग की शुरुआत हुई थी। इस खंड में भारत की आर्थिक और वित्तीय संरचना को मजबूत, संशोधित और विकसित करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया है और देश के सामने आई बाह्य भुगतान समस्याओं और 1966 के रुपये के अवमूल्यन को सटीक ढंग से समेटने का कार्य किया गया है। तीसरा खंड 1967 से 1981 तक की अवधि को माना गया है, जो 2006 में डॉ मनमोहन सिंह जी द्वारा जारी किया गया था। इस खंड में 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण और देश में बैंकिंग का प्रचार सहित बैंकिंग की सुरक्षा, रिजर्व बैंक और सरकार के बीच समन्वय के मामले का भी उल्लेख किया गया है। चौथी खंड को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1981 से 1997 तक माना है, जिसे 2013 में जारी किया गया। इस खंड को भाग ए और भाग भी में बांटा गया है। भाग ए में प्रगतिशील उदारीकरण तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है और बजटीय घाटे के स्वत: मुद्रीकरण के साथ विस्तारी राजकीय कोष नीति, अत्यधिक विनियमित बैंकिंग व्यवस्था का कार्य कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव, 1991 का भुगतान संतुलन संकट, केंद्रीय बैंकों में दूरगामी परिवर्तनों की शुरुआत इत्यादि को पहले भाग में रखा गया है। जबकि भाग बी में संरचनात्मक और वित्तीय क्षेत्र के सुधारों के कार्यान्वयन, राजकोषीय सुधार और स्वचालित मुद्रा करण की चरणबद्ध समाप्ति, सरकारी प्रति भूमि बाजार का विकास और मुद्रा प्रति भूमि और विदेशी मुद्रा बाजारों के उत्तरोत्तर एकीकरण को प्रस्तुत किया गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हिल्टन यंग कमीशन की सिफारिशों पर की गई। इससे पहले यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता था। शुरुआत में भारतीय रिजर्व बैंक ने कोलकाता, बाॅम्बे, मद्रास, रंगून, कराची, लाहौर, कानपुर में मुद्रा कार्यालय निर्गम विभाग बनाए और कोलकाता, मुंबई, मद्रास, दिल्ली, रंगून में बैंकिंग विभाग के कार्यालय स्थापित किए। सन 1937 में वर्मा भारतीय संघ अलग हो गया लेकिन जापान द्वारा बर्मा के अधिग्रहण और बाद में अप्रैल 1947 तक रिजर्व बैंक ने बर्मा के लिए केंद्रीय बैंक का का कार्य करना जारी रखा था। देश की स्वतंत्रता के बाद रिजर्व बैंक ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के रूप में जून 1948 तक कार्य किया, इसके बाद स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान में कार्य करना शुरू किया था। भारतीय रिजर्व बैंक की एक खास बात यह भी है कि प्रारंभ से ही रिजर्व बैंक को विकास, कृषि के संदर्भ में विशेष भूमिका में देखा गया था। जब भारत ने अपने योजना प्रयास प्रारंभ किए तब भारतीय रिजर्व बैंक की विकासात्मक भूमिका केंद्र में आई थी। भारतीय रिजर्व बैंक का हमारे देश के प्रति एक गहरा और सकारात्मक इतिहास रहा है।

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय करेंसी का बहुत बुरा हाल था। जिसके बाद 1926 में अंग्रेजों ने रॉयल कमीशन (हिल्टन कमीशन) को भारतीय करेंसी के बुरे हालातों के लिए भारत भेजा। भारत की करेंसी को लेकर कई विद्वानों ने उस समय अपने-अपने विचार व्यक्त किए। डॉ आंबेडकर ने भी हिल्टन कमीशन को अपने विचार व्यक्त करते हुए 'द प्रॉब्लम ऑफ रुपी-इट्स ऑरिज़न एंड इट्स साॅल्यूशन' नाम की अपनी एक बुक दी। जिसमें डॉक्टर अंबेडकर ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना का प्रस्ताव दिया था। जिसके बाद अंग्रेजों ने अंबेडकर की 'रुपये का संकट' किताब के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की। आपकी जानकारी के लिए बता दें डॉक्टर अंबेडकर पहले भारतीय थे जिन्होंने विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की थी। उम्मीद करता हूं आपको यह जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा होगा।

हरदीप कोहली

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