साहित्य चक्र

11 April 2021

बुजुर्ग




पुराने नीम से होते हैं बुजुर्ग
तपती गर्मी में ठंडी छाव
तासीर में नीम हकीम
घर की नींव होते हैं बुजुर्ग।

पुरानी किताबों से होते है  बुजुर्ग
अपने अंदर वेद पुराण समेटे
कभी गीता का ज्ञान तो
कभी महा काव्य होते है  बुजुर्ग

हमारे आने वाला कल
गुजरा हुआ बचपन होते हैं बुजुर्ग
वह अथाह  समंदर
पूरा आसमान होते हैं बुजुर्ग

वो  जानी पहचानी डगर
सुगम पथ होते हैं बुजुर्ग
हम करते उनको अनदेखा
संघर्षों में साथ रहते हैं बुजुर्ग

तुम अनमोल धरोहर को
पुरानी किताब समझकर
रद्दी में बेच देते
घर की सजावट होते हैं बुजुर्ग

तुम पतझड़ में कहर ढाते
पुरानी नीम को आरी से कटवाते
उनके वजूद को जड़ से मिटाते
फूट-फूटकर रोते हैं बुजुर्ग

जीवन की इस आपाधापी में
उस मुकाम पर स्वयं पहुंच जाते
कालचक्र की चक्की में पीस कर
जार जार रोते हैं बुजुर्ग


                           कमल राठौर साहिल


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