साहित्य चक्र

24 April 2021

क्या कहें इसे ?




उत्सव धर्मिता कह लें इसे
या फिर कह लें अपनी मूर्खता
कोहराम मचाए हुए है महामारी 
और शादी-समारोहों में पिली पड़ी है
अधिकांश जनता।

राजनीतिक चेतना कह लें इसे
या फिर कह लें अपनी मूर्खता
जिंदगियां लील रही है महामारी 
और नारे लगाते चुनावों में जुटी पड़ी है
अधिकांश जनता।

धार्मिक आस्था कह लें इसे
या फिर कह लें अपनी मूर्खता
दूर-दूर रहने से टलेगी महामारी 
और धार्मिक आयोजनों में घुसी पड़ी है
अधिकांश जनता।

पर्यटन प्रियता कह लें इसे
या फिर कह लें अपनी मूर्खता
अपने घर में रुकने से रुकेगी महामारी
और घूमने-फिरने के लिए निकल रही है
अधिकांश जनता।

स्वार्थ प्रियता कह लें इसे
या फिर कह लें अपनी मूर्खता
इक-दूजे की सहायता से कटेगी महामारी
और संकट में अपनों से भी मुंह फेर रही है 
अधिकांश जनता।

                                     जितेन्द्र 'कबीर'

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