साहित्य चक्र

11 April 2021

"सर्वोत्तम निवेश"


दादाजी की बीमारी की सूचना मिलते ही मैं अपने सभी कार्यक्रम रद्द करके उनके पास अपने पैतृक शहर जाने के लिए रवाना हो गया। वहां पर केवल ट्रेन से ही जाया जा सकता था। हवाई जहाज से जाने की सुविधा नहीं थी। लंबा सफर तय करके मैं दादाजी के पास पंहुचा। दादाजी बिस्तर पर लेटे हुए थे और उनसे थोड़ी कम उम्र के एक व्यक्ति बिस्तर के पास रखी कुर्सी पर बैठे हुए थे। 


  अर्चना त्यागी



मैंने उन्हें भी अभिवादन किया और दादाजी के पास ही बिस्तर पर बैठ गया। दादाजी के चेहरे की चमक बता रही थी कि मेरे आने से वो कितने खुश थे। मेरे पूछने से पहले ही दादाजी ने उनका परिचय दे दिया। " ये गौतम प्रकाश जी हैं। अवकाश प्राप्त रेलवे कर्मचारी। हमारी संस्था में ही काम करते हैं। बीमार हुआ तो मेरी देखभाल के लिए संस्था ने इन्हे भेज दिया है। अब तुम आ गए हो तो ये भी अपने घर जा सकेंगे। दो दिन से मेरे साथ ही हैं।" मैंने गौतम प्रकाश जी को दादाजी की देखभाल के लिए धन्यवाद कहा और बाथरूम की ओर चला गया। 

वापस आया तो देखा कि दादाजी चाय बनाने में व्यस्त थे। मैंने तुरंत उनके हाथ से चाय की केतली पकड़ ली। दादाजी हंसते हुए बोले," बेटा, तुम अभी थके हुए आए हो, मुझे करने दो। यह सब करना मुझे अच्छा लगता है। स्वस्थ महसूस करता हूं। जबसे तुम्हारी दादी भगवान को प्यारी हुई तबसे खुद ही कर रहा हूं।" मैंने उन्हें दोनों हाथों से पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया और दो कप चाय बना ली। एक कप दादाजी को देकर खुद भी चाय पीने लगा। 

मैंने विषय बदलते हुए पूछा," दादू अपनी संस्था के बारे में कुछ बताओ ना। आप कबसे संस्था के सदस्य हैं ?" दादाजी चाय खत्म कर चुके थे। कप मेज़ पर रखकर बोले," दो साल पहले  कुछ अवकाश प्राप्त लोगों ने इस स्वयं सेवी संस्था का निर्माण किया था। विभिन्न क्षेत्रों के अवकाश प्राप्त  लोग ही इस संस्था के सदस्य हैं। अकेले रहने वाले अथवा वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग लोगों को सदस्य गोद लेते हैं। उनकी देखभाल करते हैं। बीमार होने पर इलाज भी करवाते हैं। उनके कार्य के घंटे तथा सेवा के विषय में संस्था के रजिस्टर में लिखा जाता है। यदि सदस्यों में से कोई बीमार हो जाए तो संस्था दूसरे सदस्य को उसकी देखभाल और सेवा का कार्य सौंप देती है।" मुझे उनकी बात बहुत ही रुचिकर और उपयोगी लगी। अब मुझे दादाजी के पास बैठे उन सज्जन का पूरा परिचय मिल गया था। मैंने दादाजी से एक और प्रश्न किया," दादू क्या आपको लगता है कि ऐसी संस्थाओं के अस्तित्व में आने से बुजुर्गों की अवहेलना में कमी आयेगी ?" दादाजी ने मेरे हाथ से चाय का खाली कप लेकर मेज पर रख दिया और पर आत्मविश्वास से मेरे प्रश्न का उत्तर दिया," केवल अवहेलना में ही कमी नहीं आएगी अपितु देखभाल भी होगी। और सबसे बड़ी बात, आत्मसम्मान नहीं खोना पड़ेगा। 

चिकित्सकीय सुविधाएं समय पर प्राप्त हो जाएंगी। किसी पर बोझ नहीं बनना पड़ेगा।" हां दादू एक तरह का इन्वेस्टमेंट कह सकते हैं। अपना खाली समय और सेवा प्रदान करते रहो तो समय आने पर ब्याज सहित आपको वापिस मिल जायेगा। किसी का अहसान नहीं लेना पड़ेगा।" दादू मुस्कुरा रहे थे। फिर कुछ सोचकर बोले," हां पर यह तभी संभव है जब हम सब अपने व्यस्त जीवन से कुछ घंटे समाज सेवा के निकाले।" मैं बिस्तर पर लेटे लेटे आने वाले सुखद समय की कल्पना कर रहा था। तभी रसोई से बर्तन धोने की आवाज़ आई। मैं समझ गया, दादाजी रसोई में जा चुके हैं। इस बार मैंने उन्हें नहीं रोका। बढ़ती उम्र से होने वाली समस्याओं का उन्होंने एक कारगर उपाय ढूंढ लिया था। मुझे हैरानी इस बात से थी कि इतने छोटे से शहर में भी ये लोग इतनी दूर दृष्टि से भविष्य के निर्णय ले पा रहे थे। मुझे समझ में आ गया था कि अब दादाजी को किसी की आवश्यकता नहीं थी। मम्मी पापा की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद से मुझे उन्होंने ही पाल पोसकर बड़ा किया था और अब मेरी बारी आई तो उन्होंने खुद को भी संभाल लिया था।

सोचते सोचते मेरी आंख लग गई। सपने में पापा दिख रहे थे जैसे कह रहे हों," वो मेरे पिता हैं बेटा, हर समस्या का हल निकालना जानते हैं।" मैं पापा की बात से सहमत था। सोते हुए भी मैं महसूस कर पा रहा था कि दादाजी मेरे बाल सहला रहे थे।

                                                                         अर्चना त्यागी


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