साहित्य चक्र

24 April 2021

अपने हिस्से का नरक




अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो खो देता है
अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने ही,
या फिर त्याग दिया जाता है बुढ़ापे में
खुद के बच्चों द्वारा ही,
नारकीय-यन्त्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है 
अपनी मौत को आमंत्रण।

अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो फंसा होता है
जंजीरों में किसी बेहद खराब रिश्ते की,
या फिर अभिशप्त हो जीवन
अकेलेपन में गुजारने को ही,
मानसिक-यन्त्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।

अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो बिता देता है
अपनी पूरी जिंदगी 
धर्म के आकाओं द्वारा शारीरिक-मानसिक
रूप से शोषित होते हुए ही,
नारकीय-यंत्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है 
अपनी मौत को आमंत्रण।

                                       जितेन्द्र 'कबीर'

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