अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो खो देता है
अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने ही,
या फिर त्याग दिया जाता है बुढ़ापे में
खुद के बच्चों द्वारा ही,
नारकीय-यन्त्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो फंसा होता है
जंजीरों में किसी बेहद खराब रिश्ते की,
या फिर अभिशप्त हो जीवन
अकेलेपन में गुजारने को ही,
मानसिक-यन्त्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो बिता देता है
अपनी पूरी जिंदगी
धर्म के आकाओं द्वारा शारीरिक-मानसिक
रूप से शोषित होते हुए ही,
नारकीय-यंत्रणा में गुजारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो खुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
जितेन्द्र 'कबीर'
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