गरीबों का भी, कुछ तो ख़्याल किया जाए
अब रोटी पर भी सवाल किया किया जाए
यह दुनिया हकीकत से बहुत दूर खड़ी है
बहरी बस्तियों में कोई बबाल* किया जाए
कब तक यूँ ही बहते रहेंगे हवाओं के साथ
खिलाफ में भी चलने का मजाल किया जाए
कौन आया है अब तलक और कौन आएगा
अपने घरों का खुद ही देखभाल किया जाए
सियासत आँसुओं और आहों से नहीं चलती
जनता को भी तपाकर अब ढाल किया जाए
कहाँ अटक जाती है गरीबों की सब अर्जियाँ
खुदा से ही अब जाँच - पड़ताल किया जाए
*बबाल-जागरण
सलिल सरोज
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