साहित्य चक्र

07 April 2021

#शिक्षा_नीति_निजीकरण

#बायजूस (BYJU'S) ने #आकाश_कोचिंग को 7300 करोड़ रुपये में खरीद लिया। बायजुस की औकात जाननी है तो 7300 करोड़ रुपये में 15 का गुणा कर लीजिए। #आकाश_इंस्टीट्यूट निम्न मध्य वर्ग के बच्चों को #डॉक्टर #इंजीनियर बनाने के सपने बेचता है।




बायजुस ने 3-4 साल पहले नाटकबाजी शुरू की थी ऑनलाइन पढ़ाने को। मेरे पास भी ऑफर पर ऑफर आ रहे थे कि आपका बच्चा फलनवा में कमजोर डिमका में कमजोर है उसे ज्वाइन करा दें। मैंने उससे कहा कि मैं बेस्ट प्राइवेट स्कूल में बच्चे को 6-7 घण्टे पढ़ाता हूँ, अगर वह कमजोर है तो आप दो चार घण्टे और उसका दिमाग चाटकर उसके दिमाग में क्या हीरा मोती भरने वाले हैं? वह बच्चा पढ़ता ही रहेगा तो खेलेगा कब? सोएगा कब? स्कूल में पढ़कर आया है, वो रिवाइज कब करेगा ?

बहरहाल हर गार्जियन मेरे जैसा नहीं सोचते और अपने बच्चे को कथित चैम्प बनाने के लिए उन्होंने बायजुस को 1,09,500 (एक लाख नौ हजार पांच सौ) करोड़ रुपये की कम्पनी बना दिया। सपने बेचना इसलिए कह रहा हूँ कि जो बच्चे 12वीं पास करते हैं किसी कोचिंग ट्यूशन में जाएं या न जाएं 90% वही सलेक्ट होते हैं जिनका अध्ययन और प्रदर्शन हाई स्कूल और इंटर में अच्छा होता है। 10% बच्चे निश्चित रूप से कोचिंग का लाभ पाते होंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

अब आंकड़े पर नजर डालें। MBBS की 60% सीटें प्राइवेट हो गईं। एक करोड़ रुपये दीजिए और बच्चे को डॉक्टर बनाइये। जिनकी एक करोड़ रुपये देकर बच्चे को डॉक्टर बनाने की भसोट नहीं है, शेष बची 40% सरकारी सीट के लिए कोचिंग की मारामारी में शामिल होते हैं। इस 40% में से 90% सीटें वे बच्चे ले जाते हैं जो 9वीं से 12वीं तक में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और कोचिंग पढ़ें न पढ़ें, सेलेक्ट होते है। जब इतने हजार करोड़ रुपये का धंधा है तो संभव है कि पेपर लीक भी कराया जाता हो !

सरकारी कॉलेज में बच्चे को पढ़ाकर डॉक्टर बनाने का सपना देखने वाला ये अमूमन वही हरामखोर लोवर मिडिल क्लास है,जिसे सरकारी से चिढ़ है और अगर खुद भी सरकारी नौकरी कर रहा है तो अपने को छोड़कर बाकी सरकारी व्यवस्था को भृष्ट बताता है।

बहरहाल.. यही #निजीकरण का नित प्रतिदिन मार्ग प्रशस्त करती देश की #शिक्षा_नीति है। आप इस धंधे में कहीं नहीं हैं बॉस। खुद डॉक्टर नहीं बन पाए और प्राइवेट सेक्टर में पिछवाड़ा रगड़ रगड़कर छील रहे हैं तो उसकी सजा बच्चे का बचपन छीनकर न दें। जिसका डॉक्टरी का धंधा अच्छा चल रहा है, वह अपने बेटी बेटा के लिए एमबीबीएस की सीट खरीद लेगा, यह नया रजवाड़ा रूल है। ऐसे में बच्चे पढ़ने दें। उसको जो करना होगा, कर लेगा। स्कूल कॉलेज में जहां तक पार लगे, उसे पढ़ने की फ्रीडम दें, पैदा कर दिए हैं तो उसे अपने सपनों के पीछे पागल न बनाएं।

भवतु सब्ब मंगलम


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