साहित्य चक्र

25 April 2021

जुहू बीच मुंबई



ठंडी होती शाम की रेत में फैला बीच
जुहू को भागने का मौका देता है

अलसाई भीड़ प्राकृतिक से अप्राकृतिक होती
सच के संदर्भों की निर्मम व्याख्या है

स्वाद की अठखेलियां लहरों के मध्य
जीभ की खुरापाती जश्न का बुनती है ताना-बाना

बेसुध भविष्य देह की परतों में
समय की मौलिकता के हस्ताक्षर रचता है

खुली आंखों की बदलती तस्वीर में
आतुर मुंबई टोहती है विस्तार

लौटती लहरों पर फेहरिस्त का कच्चा चिट्ठा
सूरज-चांद की मिल्कियत सा है बहुत कुछ

मखमली दूब सा विस्तारित किनारा
पूरी धड़कनों के साथ माहौल की गति और नवांकुरों का हाल है

मुंबई, गर्भ में पलता अटल खुशियों का स्थापित इंतजार है
जिसके नशे का सुरूर पूरे देश पर चढ़ता है।

डॉ रीता दास राम


No comments:

Post a Comment