मैं श्मशान हूँ
जलाती हूँ,
चांदनी रात के सफेद उजियारा
में दहकते शव जल रहे थे,
नदी की मध्यम धारा में
शांत धुन मद कर रहे थे,
कुछ जला,कुछ अधजल सा
कुछ राख हुये,
कुछ के पूर्ण कुछ के सपने
जलकर खाक हुये,
मैं श्मशान हूं
जलाती हूं,
सिर्फ उस मिट्टी को जिनमे
ममता,मोह और रिश्ते को,
भूत से भविष्य तक
गर्भ में मेरे ना कितने जल गये,
मैं जलती हूँ,
युगों-युगों तक जलती जाउंगी
सभी को निगलती जाउंगी....
अभिषेक राज शर्मा
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