साहित्य चक्र

30 April 2020

मृदुल कूक




तुम कूक उठी
मृदुल-मृदुल
ये गान तुम्हारा अमर रहे |
प्रेमीजन सुन कूक तुम्हारी मगन रहे ||


तुम काली-काली
रुप न देखा जग
स्वर उतर जाये उर |
जैसे प्रेमी की हूक अमर ||


स्वच्छ गगन तले
घने पातों के बीच छिपे
कंठ तुम्हारा अमृत बर्षाये |
गा-गाकर अमर गान स्वयं ही हर्षाये ||


कोकिल प्यारी
श्याम छवि न्यारी
गूँज रही बागों में ध्वनि तुम्हारी |
तुम गाओ नित-नित, हम सुनेंगे मृदुल कूक तुम्हारी ||


                                         मुकेश कुमार ऋषि वर्मा


छद्मयुद्ध से लथपथ

छद्मयुद्ध से लथपथ


दंगे फसाद के दल दल मे
दबता जा रहा भारत है
छद्मयुद्ध से लथ पथ  होकर
सहता जा रहा भारत है...


आरक्षण, आंदोलन के नाम पर..
धर्म संगठन के नाम पर..
जल रहा, बिखर रहा..
देश का हर स्थान है...


मातृभूमि के सानिद्य पाकर..
उछाल रहा उनका मान है..
छद्मयुद्ध से लथ पथ  होकर..
सहता जा रहा भारत है..

तबीबीओ, सरकारी कर्मचारियों..
कोतवालो का बहिस्कार हो रहा है...

जीवन  रक्षको का कैसा
ये उपहास हो रहा है..

विटंबना के इस जाल से, 
देश द्रोही के मायाजाल से 
असुरक्षित देशवासियो है...

छद्मयुद्ध से लथपथ हो कर
सहता जा रहा भारत है..

लाशो के ढेर पे, दैनिक मृत्यु आंक पे
डगमगा रहा रणनीति का दाव है..

संविधान के सीमा से परेह..
आम आदमी का बुरा हाल है..

तमाशा ये नागरित्व का
देश के लिए बड़ा शर्मशार है...

छद्मयुद्ध से लथपथ हो कर
सहता जा रहा भारत है..


                                 एक एहसास अल्पा महेता



ए मेरे वतन के लोगों जरा आँखों में भरलो पानी



ऐ मेरे वतन के लोगों, कह रही है भारत माता।
सब सँभालो जिम्मेदारी और निभाओ अपना नाता।।
लॉकडाउन का करके पालन, समय रहते ही संभल जाओ।
बचने को बीमारी से, अनुशासन में ढल जाओ।।

ए मेरे वतन के लोगों, तुम बचालो अपना भारत।
कोरोना को हरा दो, तुम जिता दो अपना भारत।।

कोरोना पैर पसारे, दिन-रात ही बढ़ता जाये।
सुरसा के मुख की भाँति, विकराल ही होता जाये।।
संकट की इस घड़ी में, ये बोल रहा है भारत।
कोरोना को हरा....

सरकार का कहना मानो, तुम घर में ही रुक जाओ।
चेहरे पर मास्क लगाओ, कोरोना से बच जाओ।।
जीवन सब अपना बचालो और बचालो अपना भारत।
कोरोना को हरा....

सोशल डिस्टेंसिंग रक्खो, साबुन से हाथों को धोओ।
तुलसी का काढ़ा पीकर, खुद को मजबूत बनाओ।।
जो तुम ऐसा कर लो तो जीतेगा अपना भारत।
कोरोना को हरा....

बुजुर्गों का ध्यान रक्खो, लक्ष्मण रेखा पार करो ना।
इम्यूनिटी अपनी बढ़ाओ, एप भी डाउनलोड कर लो ना।।
गरीबों का ध्यान राखो, काम से न किसी को निकालो।
करो नमन कर्मवीरों को, जो बचा रहे हैं हमको।
करो दृण संकल्प सभी ये, जिताएँगे अपना भारत।
कोरोना को हरा....

                             अंकित भारद्वाज


29 April 2020

" जान तो जहान "


दुनिया की सारी ताकत
घुटनों के नीचे ला डाली
कुछ ही पल में इंसानों को
उनकी  औकात बता डाली


ना याद रहा अब चन्द्रायण
सब भूल गए अब मंगलायन
एक नन्ही सी चींटी ने घुस
हाथी की मौत बुला  डाली


तरह तरह के प्रयोगो का
भोग रहे फल लोग सभी
अपने ही हाथों से अपने
हाथों आरी चलवा डाली

परमाणु  शक्ति के मद में
चूर हुए जो बैठें हैं
इक अदने से विषाणु से
सत्ता उनकी  हिलवा डाली


'जान है तो जहान है 'नही
समझ पाए जो लोग अभी
ऐसे भटके इंसानों को
मृत्यु की राह बता डाली


प्रकति  से  ना छेड़छाड़ कर 
इक दिन  फिर  पछताएगा
आने वाले कल की 'अंजू '
उसने इक झलक दिखा डाली 


                                    अंजलि गोयल 'अंजू'

28 April 2020

"सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी"

          

देश के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को पूरे देश में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है । वर्ष 1948  में महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी,और उनकी हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था । इस दिन महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ,रक्षा मंत्री राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपने कर कमलों से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। महात्मा गांधी की याद में पूरे देश में सभाएं आयोजित की जाती है। एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी जनसाधारण से अपील की है ,कि महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर 2 मिनट का मौन अवश्य धारण करें । गांधी जी ने देश को आजाद कराने के लिए सत्याग्रह का रास्ता अपनाया, वे सदैव अहिंसा में विश्वास रखते थे, अपने जीवन काल के दौरान उन्होंने जनसाधारण को इसी का पाठ पढ़ाया । 

अफ्रीका से वापस आकर गांधीजी ने स्वयं को स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में झोंक दिया। 1915 के बाद महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ एक के बाद एक आंदोलन आरंभ किए, 1920 में असहयोग आंदोलन चलाया, फिर 1930 में नमक के अत्याचारी कानून को तोड़ने के लिए आंदोलन किया ,दलितों के पक्ष में बढ़-चढ़कर भाग लिया,  उसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया, आखिर उनके अनथक प्रयत्नों के आगे अंग्रेजों को अपनी हार माननी ही पड़ी और 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद हो गया। महात्मा गांधी जी ने जिस रास्ते पर चलकर भारत को  आजाद कराया ,वह रास्ता सत्य और अहिंसा पर आधारित था। उनका प्रयोग हमारे जीवन के कई पडावों में अत्यधिक मददगार साबित होता है। उन्होंने सदैव अच्छा व्यवहार करने, सच बोलने की सीख और जरूरतमंद लोगों की सहायता करने की शिक्षा दी। महात्मा गांधी जी सत्य को ही भगवान मानते थे । 

वह जाति, धर्म, लिंग के आधार पर किए जाने वाली भेदभाव के सदैव खिलाफ थे ।महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा को ही मानवता का सबसे कीमती उपहार मानते है अगर हम महात्मा गांधी के अनथक प्रयासों को सार्थक करना चाहते हैं और भारत को  उन्नति और समृद्धि की  राहों  की ओर ले जाना चाहते हैं ,तो हमें उनकी सीख पर चलना होगा ,तभी हम एक उज्जवल भारत के सपने को पूर्णता पूरा कर सकते हैं और समाज में व्याप्त बुराइयों का मुकाबला डट कर कर सकते हैं। 


                                                    अमित डोगरा 

*जीवन में सहजता एवं सरलता*



सहजता एवं सरलता का आत्मिक धरातल पर अवतरण "व्यवहार की कसौटी पर ही दृष्टव्य है।  शांत मनोभावों का विराम चिन्ह कभी-कभी मन की परतों में कहीं प्रवेश कर स्थान तो ग्रहण कर लेता है ...........किंतु यह आवश्यक नहीं कि यह स्थाई ही हो .... ।


           जल   की तरह जीवन में सरलता का समावेश अंतः पटल को श्वेत रूप आकार,, शांत भाव एवं उर्जा से ओतप्रोत  कर देता है.......... किंतु जिस प्रकार प्यासा व्यक्ति जल ग्रहण कर प्यास  शांत करता है.......  तब  यह जल की नैसर्गिक  सरलता है .........। जल की सरलता का  प्रत्यक्ष प्रमाण उसका तरल होना है...... उस वक्त  जल ठोस आकार धारण नहीं करता है ....…बल्कि वह तरल रूप में ही पिपासु की  प्यास शांत कर  उसे उर्जा प्रदान करता है । जीवन को जीवित रखने के लिए अति महत्व पूर्ण है ....... जल का   तरल होना।
                  

मनुष्य की सहजता  उसके जीवन के परिचालन एवं मुक्ति पथ के लिए उतनी  ही आवश्यक है…....जितना दैहिक स्तर पर मनुष्य की जल के लिए प्यास.... यदि व्यक्ति में सहजता सरलता को  आत्मसात करने के लिए अतीव एवं उत्कट प्यास जागती है.......तो यह भाव अजस्र स्रोत के रूप में अनवरत प्रवाहित होगा ..........उसके स्वयं के भीतर से यह स्रोत  कहीं बाहर नहीं है....उसे  उस भाव को प्राप्त करने के लिए अपने भीतर में उतरना है ।। जीवन जीने की सरस कला के अंतर्गत सहजता जन्म अवश्य लेती है...... उसी के साथ सरलता  का अवतरण"   क्रियाओं में भी प्रकट होने लगता है। जीवन की अप्राप्य स्थितियां प्राप्य की ओर गतिशील हुई सी आभासित होती हैं.....बहुत कठिन होते हुए भी सरल हो सकता है  किंतु......जीवन में इन्हें.… उतारना.....।

जीवन पथ में जो कुछ भी है.....यदि हम कहीं भीतर से उत्पन्न उस सहजता  से अपने जीवन को जीते हैं....उस पथ पर आगे बढ़ते हैं तो जीवन सरलता  के पुष्पमयी  बगीचे से लहलाने लगता है । अंदर और बाहर सर्वत्र  सुगंध बिखर जाती है.....।


 इस प्रकार  सहजता हमारे कर्म के क्षेत्र एवं  समाज के साथ हमारे कार्मिक व्यापार को प्रभावित करती  है.....। दुश्मन मित्र होने लगते हैं.... मित्र और गहरे जन्मों के सखा बनने लगते हैं..... और हमारा जीवन एक नई दिशा से गुजरते हुए नवीन पथ पर तीव्र गति से आगे बढ़ता है..... ।।

           
चहुं ओर  शांति का वातावरण एक वट  वृक्ष की शाखाओं के समान है   जो सभी के लिए समान छाया प्रदान करता है। वही इस भाव के प्राकट्य पर होता है।


निरंतर उठते भाव हृदय की गति से भी कहीं अधिक वेगवान हो जाते हैं.......हृदय संपूर्ण शरीर का परिचालन करता है तो वह हमारे मन को निरंतर गतिशील भी बनाए रखता है....निरंतर बदलते भाव मन की दिशा को भी परिवर्तित कर देते हैं । उलझे हुए भावों का समीकरण एक ऐसा प्रश्न बन जाता है....… कि वह सुलझने के बजाय  उलझा हुआ अधिक रहता है।

 भावों की  सहज स्थिति में स्थिर रहना सरल है ।  वहीं असहज भाव धारा की  वेग युक्त मनोभाव धारा में बहते चले जाना वैसे ही है जैसे वेगवान नदी में उसकी जलधारा के साथ अनियंत्रित होकर बहते जाना......जल की धारा के साथ बहना  स्वयं को डुबो देने जैसा ही है । जब रुक पाते हैं.....तब कुछ ऐसा घटित हो जाता है..... कि स्थितियां कुछ भिन्न होती हैं  ।

                  अतः  सहजता और सरलता रूपी तट पर बैठकर जीवन में जो सफलता मिलती है वह असहज जीवन की सफलता के गहरे समुद्र में डूबने से भी प्राप्त नहीं होती है।



                                                डॉ  सुकेशिनी दीक्षित




रेत



रेत पर बने तंबू को तना देखा तो
एहसास हुआ कि
इनका पूरा जीवन इसमें शामिल है
आज यहां तान लिया है
कल कहां ठिकाना होगा पता ही नहीं...

समय की कोई सीमा नहीं
जो इनको बांध सकें
रेत की तरह फिसलता जा रहा जीवन
रुकना यह न जान सके.....

उनकी तो आंखों की नमी भी
जैसे सूख चुकी है
दिन में गर्म रेत की तपन में
इनकी दुनिया सिमट चुकी है...

इन बंजारों के मासूम बच्चों की
आंखों में लाखों सवाल
उनके अंधेरे जीवन में उजाला
कहां से लेकर आऊं
ऐसा उनका जीवन क्यों
क्या उनको समझाऊं....

रेत के घरौंदे कभी बसते नहीं
बस यूं ही बनते बिगड़ते हैं
फिर भी वह उसमें खुशियां ढूंढ लेते हैं....

दीपमाला पांडेय


वो कोई ख्वाब ही थी




ईरान के अब्दुल सलीम अस्करी और शदी हबीब आगा के घर में पैदा हुई मुमताज़ ने भारतीय सिनेमा पटल पर जो धूम मचाई ,वो किसी भी अभिनेत्री और उसके दर्शकों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। कसा हुआ बदन,छोटी नाक,अदाएँ बिखेरते हुए लव,अनार से भी लाल गाल और ज़ुल्फ़ों में उमड़ता -घुमड़ता बादल देखकर केवल और केवल मुमताज़ का नाम ही जहन में आता है। दो रास्ते फिल्म का गाना "ये रेशमी ज़ुल्फ़ें,ये शरबती आँखें ,इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी " मुमताज़ की अदाओं को सौ फीसदी सही साबित करते हैं।



अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष में दारा सिंह के साथ कई फिल्मों में काम करने के बाद जब उनका सिक्का चलना शुरू हुआ तो फिर वो चलता ही गया।

उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए एक अच्छी नर्तकी होना लाजिमी समझा जाता था। उस दौर की वहीदा रहमान,आशा पारेख,हेमा मालिनी  सभी बेहतरीन नृत्य करने में परिपक्व थी। एक अच्छी नर्तकी के साथ सधा हुआ अभिनय भी किया जा सके तो एक ख्वाब और रूमानी दुनिया का जन्म परदे पर होता है जिसमें दर्शक खो जाते हैं और निकलने के बाद भी उसी ख्वाब के बारे में सोचते रहते हैं। रोटी फिल्म का गाना "करवटें बदलते रहे सारी रात हम ,आपकी कसम " में बर्फों के बीच सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ रोमांस देखकर हर दर्शक का मुमताज़ को अपनी प्रेमिका के रूप में देखना शुरू कर देना कोई अजीब-गरीब बात नहीं है। कितने की कमरों की दीवारों पर,वार्डरोब में मुमताज़ की बड़ी-बड़ी पोस्टर्स का एकाधिपत्य हुआ करता था। मुमताज़ खुद ख्वाब बनकर ख्वाब पैदा करने में माहिर अदाकारा थी।



अपने दौर के सब बड़े कलाकारों के साथ मुमताज़ ने काम किया और अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। वह राज खोसला की ब्लॉकबस्टर दो रास्ते (1969) थी, जिसने मुमताज़ को पूर्ण फिल्मी सितारा बना दिया। इसमें राजेश खन्ना ने अभिनय किया था। हालाँकि मुमताज़ की फिल्म में छोटी भूमिका थी, फिर भी निर्देशक राज खोसला ने उनके साथ चार गाने फिल्माए। 1969 में, राजेश खन्ना के साथ उनकी फिल्में दो रास्ते और बंधन, वर्ष की शीर्ष कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। उन्होंने राजेन्द्र कुमार की ताँगेवाला में प्रमुख नायिका की भूमिका निभाई। शशि कपूर, जिन्होंने पहले सच्चा झूठा (1970) में उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया था, अब वह चाहते थे कि वह चोर मचाये शोर (1974) में उनकी नायिका बनें। उन्होंने लोफर और झील के उस पार (1973) जैसी फिल्मों में प्रमुख नायिका के रूप में धर्मेन्द्र के साथ काम किया।



मुमताज ने फ़िरोज़ ख़ान के साथ अक्सर काम किया जिसमें हिट फिल्में मेला (1971), अपराध (1972) और नागिन शामिल हैं। राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी कुल 10 फिल्मों में सबसे सफल रही। उन्होंने अपने परिवार पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए फिल्म आईना (1977) के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। उन्होंने 1990 में आँधियां से फिर वापसी की थी। 1971  में आई फिल्म खिलौना के लिए मुमताज़ को फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।



आप मुमताज़ पर फिल्माए एक-एक गाने को देखें , आपको नृत्य और अदाकारी का बेजोड़ संगम मिलेगा। सच्चा-झूठा फिल्म का गाना  "यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो या कोई प्यारा का इरादा है ",प्रेम कहानी फिल्म का " फूल आहिस्ता फेको, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं ",चोर मचाए शोर का 'एक डाल पर तोता बोले ,एक डाल पर मैना ",रोटी का "गोरे रंग पे इतना गुमाँ न कर, गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा " लोफर का "मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं ,तू मुझे आजमाने की कोशिश न कर " या खिलौना फिल्म का गाना 'खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाती हो " साबित करता है कि हर तरह के अभिनय में मुमताज़ एक ख्वाब पिरो देती थी और दर्शक कहीं खो से जाते थे।



समकालीन अभिनेत्रियों के दीवाने जो फिल्मों की बारीकियों को समझते हैं और हिंदी फिल्मों से प्यार करते हैं,मुमताज़ की फिल्मों को एक बार जरूर देखें।  चूड़ीदार कुर्तों ,लट पर बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों और बेपरवाह हुस्न का दौर सब वापस होता हुआ महसूस होने लगेगा। किसी भी डी वी डी पार्लर से लाकर मुमताज़ को नहीं किसी ख्वाब को देखने का अवसर न गवाएँ।



                                          सलिल सरोज


एक वैश्या की कहानी


यह बात एक साल पुरानी है, जब मेरे दोस्तों ने मुझे बोला तुम्हें किसी रंडी (वैश्या) का इंटरव्यू करना चाहिए। अक्सर हमारी इस पर चर्चा हुआ करती थी। फिर होना क्या था मैं पागल था और एक दिन मैं चल दिया रात के 8:00 बजे एक बैग लटका कर व एक फोन मेरे हाथ में, 500-600 रूपये साथ में एक एटीएम जिसमें 2000 से ऊपर नहीं थे। इसलिए क्योंकि मुझे डर था अगर मैं कहीं इन्हीं कुछ बदमाशों से पकड़ा गया या गिर गया तो मेरे सारी पैसे खत्म हो जाएंगे इसलिए मैं कम पैसे और एकदम सुरक्षा के साथ गया था।



रात के 8:00 बजे खाना खाकर मैं मेट्रो से निकल गया। करीब 9:00 बजे के आसपास में दिल्ली के उस एरिया में पहुंचा जहां जोर-शोर से वैश्यावृत्ति का कारोबार फलता-फूलता है। दोस्तों की बातों से मेरे दिमाग में कई सवाल पैदा हो रहे थे और दोस्त भी जानना चाह रहे होंगे कि आखिर एक वैश्या (रंडी) से यह क्या जान सकता है ?


सड़कों पर कुछ लोग इशारा कर रहे थे, जिसमें 12, 15, 18 साल तक के बच्चे और किशोर भी थे। मैंने करीब 15 साल के लड़के से पूछा, भैया मुझे रूम चाहिए तो उसने मुझे बोला लड़की भी मिल जाएगी। मैंने उसे बोला मुझे सिर्फ रूम चाहिए। उसने बोला बिना लड़की के बिना रूम नहीं मिलेगा। मगर मैं तो मन में सोच कर आया था कि मुझे सिर्फ एक रंडी का इंटरव्यू चाहिए। मैंने उससे पूछा कि रूम का रेंट कितना होगा और जो लड़की आएगी वह कितना पैसा लेगी। उसने साफ शब्दों में कहा ₹2000 लड़की के ₹1000 कमरे का..! मेरे पास इतने पैसे नहीं थे, क्योंकि मैं सिर्फ सुरक्षा के तौर पर ₹2000 पड़े एटीएम को लेकर गया था। वह लड़का बहुत चालाक था, बात करते-करते मुझे अपनी बातों में फंसाने की कोशिश करने लग गया। मैंने बोला चलो मुझे रूम दिखाओ। पहले मैं देखता हूं कि आपके रूम सही या नहीं। 


वह लड़का मुझे गली-गली घुमा कर एक होटल में लेकर गया, जबकि वह होटल मेन रोड से चार कदम की दूरी पर था। ऐसे ही बातचीत करते करते मैंने पूछा तुम पढ़ाई क्यों नहीं करते हो ? उसने साफ शब्दों में बोला साहिब हमारा नसीब ही कहां है। मैंने कहा क्यों ? ऐसा क्यों बोल रहे हो ? तुम रहने वाले कहां से हो और यहां कैसे पहुंचे हो कोई अच्छी सी जॉब करते हैं ? 


साहिब बिहार का रहने वाला यह मत पूछेगा बिहार कहां रहते हैं। मेरे पिताजी को गांव वालों ने मिलकर मार दिया। घर में मां बहने और भाई लोग हैं। अपने परिवार का दुख नहीं देखा जा रहा था तो घर से भाग कर आ गया कि अपने घर और परिवार की कोई मदद करूंगा। मैंने तुरंत बोला तू इस काम पर क्यों पड़े हो। उसने साफ बोला साहिब यह काम जरूर गंदा है, मगर यहां पैसे एकदम सही मिलते हैं। मैंने कहा अच्छा...! मैंने उसे रोका उसे कंधों में हाथ रखा और उससे बोला अगर तुम मेरी छोटी सी मदद करोगे तो मैं तुम्हें ₹1000 दे सकता हूं। मगर पैसे काम होने के बाद ही मिलेगा। उसने कहा कैसी मदद..? मैंने उसे साफ बोला कि मुझे एक रंडी का इंटरव्यू चाहिए। उसने बोला यह काम तो बहुत ही कठिन है और शायद ही हो पाएगा। मैंने उसको बोला मेरे माथे पर सी तो नहीं लिखा है। क्यों नहीं हो पाएगा ? 


जैसे ही हम होटल में पहुंचे तो वहां पर दो लोग और थे। एक मेरे चाचा के उम्र का होगा करीब 40 से 45 वर्ष का, मगर उससे बोले तो बोले कैसे ? भले ही वह मेरे रिश्तेदार ना हो मगर एक उम्र का अंतर तो होता ही है। मैंने उसे बोला भाई कमरे कितने का मिलेगा। उसने बोला 1000- 2000, मैंने कहा मुझे सिर्फ सुबह 5:00 बजे तक रुकना था। हो सकता है मैं 5:00 बजे से पहले खाली कर दूं। उसने कहा ठीक है आप ऐसा करना ₹800 दे देना, मैंने कहा 800 नहीं ₹600 दूंगा। मैं कमरे देखने गया, उस दौरान उस अंकल ने मेरे से पूछा क्या लड़की भी चाहिए ?   


मैंने कहा- हां मगर मुझे सिर्फ उसका इंटरव्यू लेना है। जैसे ही मैंने इंटरव्यू का नाम लिया तो उसे मुझे कमरा देने के लिए मना कर दिया। मैंने उसे साफ कहा मुझे सिर्फ इंटरव्यू लेना है बाकी मुझे आपके इस काम में कुछ दखलअंदाजी नहीं करनी है। उसने कहा ठीक है, मगर पैसे लगेंगे। मैंने कहा कितने ? आधे घंटे का 1000 और 15 मिनट का ₹500, हां एक घंटा का ₹2500। मैंने उससे बोला मैं ₹1000 दूंगा, मगर मैं चुनाव करूंगा मैं किसका इंटरव्यू करूंगा। उसने कहा मेरी भी एक शर्त है आपके साथ में एक लड़का हमारा बैठेगा। मैंने कहा मुझे कोई आपत्ति नहीं है। 


जैसे ही वह व्यक्ति मुझे एक बंद कोठरी में लेकर गया, मैं अचंभित हो गया, जो फिल्मों में दिखाया करते थे, वह आज मैं अपनी आंखों से देख रहा था। करीब 8-10 महिलाएं वहां क्रमशः अलग-अलग कपड़े पहने बैठी थी। सभी महिलाएं करीब 25, 30, 35 उम्र के होंगे। यह मेरे जीवन की पहली घटना है, जो मैंने अभी तक अपने पिताजी को नहीं बताई है। मेरे पिताजी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। उन सभी महिलाओं में एक अलग बैठी हुई थी और फोन पर बात कर रही थी। उसने जींस टी-शर्ट के साथ टोपी पहनी थी। मैंने बाहर आकर उस अंकल से बोला मुझे इस लड़की का इंटरव्यू करना है। करीब 5 मिनट बाद उस लड़की के साथ एक लड़का मेरे कमरे में आ गया। मैं लड़की से हाथ मिलाते हुए, अपना नाम बताया और उसने मुझे अपना नाम बताया। मैंने उससे पूछा क्या आपको पता है कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूं ? उसने मुझे जवाब दिया तुम मेरे बारे में जानकर क्या करोगे ? क्यों मेरे जख्मों में नमक डालना चाहते हो। मैंने कहा आप लोगों के बारे में मेरे दोस्त लोग अलग-अलग कहानियां बताते और अलग-अलग बातें करते हैं। इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि क्या सभी की कहानी एक जैसी होती है या फिर कुछ अलग ही होती है। 


मेरा समय बीता जा रहा था करीब 2 मिनट बीत चुके होंगे। उसने कहा ठीक है मैं बताऊंगी मगर कमरे की लाइट ऑफ रहेगी। मैंने उसे पूछा क्या मैं तुम्हारी बातों को रिकॉर्ड कर सकता हूं। उसने मेरे से कहा- मैंने अभी तक के जीवन में तुम्हारे जैसा व्यक्ति नहीं देखा। जो मेरी हम उम्र का हो और वो सिर्फ इतनी सी बात जानने के लिए यहां पहुंच गया। मेरे पास उस समय किसी न्यूज़ चैनल का कार्ड था। मैंने उसे कार्ड दिखाते हुए कहा अगर मैं चाहता तो मैं यहां आप लोगों को बंद भी करवा सकता हूं।   मुझे तो बस सिर्फ इतना जानना है- आखिर इस वेश्यावृति में महिलाएं कैसे आती है और क्यों आती है ?  


उस लड़के ने गुस्सा करते हुए कहा- तुम लोग क्या जानो हम लोगों का दर्द, तुम लोगों को तो सिर्फ अपनी हवस बुझानी होती है। तुम्हारे घर में बीवी बच्चे सब होने के बावजूद भी तुम लोग हमारे पास आते हो और कुछ पैसे देकर तुम यह सोचते हो कि हमने इस पर एहसान किया है। मैंने उससे कहा तुम गुस्सा मत करो, मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो आप लोगों को इंसान नहीं सिर्फ हवस मिटाने की चीज समझते हैं। अगर मुझे अपनी हवस ही मिटाने होती तो मैं भी पैसे देकर तुम्हारे साथ थोड़ी देर सेक्स करके चला जाता। मगर मुझे जानना है- वो इसलिए क्योंकि मुझे इस हकीकत का पता चले कि आखिर इस कारोबार में कोई क्यों आता है कैसे आता है ? मैं किसी की सुनी सुनाई बातों में नहीं आता वो जब तक मैं अपने कानों से सुन नहीं लेता और अपने आंखों से पढ़ नहीं लेता। बाकी तुम्हारी मर्जी है अगर तुम बताना चाहती हो अपने बारे में तो बता सकती हो, नहीं तो तुम आराम से जा सकती हो।


उस वेश्या के आंखों में मैंने आंसू देखें, जो दूसरा लड़का था वह बोल- बहुत हो गया अब कुछ नहीं बोलना है। मैंने कहा क्यों अभी तो 10 मिनट हुए हैं। मैंने उस लड़की से बोला और पूछा- क्या आप मुझे अपने बारे में बताना चाहते हैं ? 


उस लड़की ने अपनी आंखें बंद की और रोते हुए कहा- मैं पश्चिम बंगाल की हूं, मेरे गांव से बांग्लादेश नजदीक होता है। मेरे गांव का एक व्यक्ति मुझे कोलकाता में नौकरी के बहाने मेरे घर से लेकर आया। जब मैं कोलकाता पहुंची तो उसने मुझे ऐसी जगह में बेच दिया। करीब उस समय मेरी उम्र 14-15 साल होगी। करीब 3 साल मैंने कोलकाता के उस स्थान पर काम किया। उसके बाद मुझे राजस्थान में बेच दिया गया। राजस्थान में करीब 3 या 4 साल काम किया। इस काम का वसूल है जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ेगी वैसे वैसे आप का रेट गिरेगा। करीब 35 से 40 साल के बाद आप काम करने लायक नहीं रह जाते हैं। जब मुझे राजस्थान में सही पैसा नहीं मिला तो उसके बाद मैंने दिल्ली आने का फैसला किया। जहां मैं पिछले 5-6 सालों से काम कर रही हूं। किराए का एक छोटा सा रूम लिया है, वही रहती हो और रात में अपने इस काम में आ जाती हूं। 


इस काम में आपको ज्यादातर बंगाल, बांग्लादेश, नेपाल और दिल्ली की कुछ कॉलेज गर्ल्स देखने को मिलेंगी। कोई भी इस काम को अपने शौक से नहीं करता हैं, या तो वह पैसा कमाना चाहता है या फिर वह इस दलदल में फेंका गया है। जैसे नौकरी के बहाने मुझे इस दलदल में फेंका गया। हां आज इस कार्य को बहुत सारे लोग करना चाहते हैं। हमारे बारे में कोई नहीं सोचता है। हम एक गरीब से लेकर एक नेता तक की हवस बुझाते हैं। लोग पैसा देते हैं मगर यह सोचते हैं कि यह इंसान नहीं है। 


मैं उन सभी स्त्रियों से कहना चाहती हूं कि आप अपने मर्द से इतना प्रेम करो कि उन्हें हमारी जरूरत ही महसूस ना हो। मैं उन मर्दों से भी कहती हूं जो स्त्री को यानि हमें सिर्फ हवस बुझाने की चीज समझते हैं। क्या आप जितना प्रेम हमें दिखाते हैं, कभी आपने इतना प्रेम अपनी पत्नी से किया। आप स्त्री को हवस बुझाने की चीज ना समझ कर तो देखिए। जो आप हमारे साथ करते हैं, जरा सोचो अगर ऐसे ही आपकी पत्नी, बहन किसी और के साथ करवाएं तो क्या आप खुश रहेंगे ? कभी नहीं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं- हे ईश्वर ऐसा जीवन किसी भी प्राणी को ना दें। हमें अपने आप से ही घृणा हो गई है। 


उस वेश्या ने आगे जो कहा मैं वह बात आप लोगों तक शेयर नहीं कर सकता, मैंने उसे वादा किया था कि मैं सिर्फ आपकी इतनी ही बातें लोगों तक शेयर करूंगा। 


इस साक्षात्कार के बाद मुझे समझ आ गया कि आज भी हमारा समाज स्त्री को किस नजरिए से देखता है और आज भी मजबूर, गरीब, वंचित का शोषण पैसे के नाम पर कैसे किया जाता है। जरा सोचिए अगर इसी प्रकार हमारे- आपके घर की किसी लड़की को नौकरी, पैसे के झांसे में रखकर इस वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाएगा तो क्या होगा ?

                                           



नोट- अगर आपको मेरी इन बातों में जरा सी भी विश्वास और हकीकत नजर आती है, तो आप इसे शेयर कर सकते हैं। वैसे मेरे इस लेख को पढ़ने के बाद मेरे जानने वाले मेरे बारे में अलग-अलग धारणाएं बनाएंगे। जिन धारणाओं से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि मैंने अपने मम्मी-पापा को वचन दिया है, कि मैं कुछ भी गलत नहीं करूंगा। 



                                                             दीपक कोहली 'पागल'


आज घर है सूना सूना



छोटी सी, नन्ही सी,आई परी
खुशियां ही खुशियां ,नजर आई नई
      दिन और रात ,बीती चुलबुली बातों से
      कभी कविता ,कहानी ,कभी गानों से
कुछ दरिंदों ने ,कर दिया उसको दूर
दुनिया से, विश्वास हो गया चूर

       आंखें भीगी ,टूटा दिल का कोना कोना
          आज घर है सूना सूना
घर की उदासी नही देखी जाती 
भीगी पलको में नींद नही आती
         माता पिता का टूटा खिलौना 
           आज घर है सूना सूना

दिन मे घेरे तन्हाई , चारो तरफ उदासी की परछाई
मन्दिर मे बैठे बैठे ,रोज शिकायतो का रोना
          भगवान क्यूँ  नही सुनी थी  ,तुमने मेरी बच्ची रोना
            आज दिल है सूना सूना
जब नन्ही परी की यादे सताती है, 
जिंदगी जीने की इच्छा मर जाती है 
            हम माता पिता के कलेजे का टुकडा खोना
            आज घर है सूना सूना।

ऐसा होता आया है ,और होता रहेगा
तो कौन बेटी को जन्म देना चाहेगा
             दरिन्दो का खुले आम घुमना
              क्या कानुन और समाज सजा दिला पायेगा?
अगर हाँ तो भी ,ना हो तो भी 
फर्क क्या पड पायेगा ?
     लौट ना पायेगी बच्ची हमारी
       जीते जी मर चुके माता पिता को 
      अब कौन आवाज लगायेगा?


                                              अन्शु शर्मा


तुम को शांत कर दूंगी

आग

तुम जिस रूप में रहोगे
मैं स्वीकार कर लूंगी
अगर धधकती आग की ज्वाला
बन जाओ तुम तो
बारिश की बूंद बन
तुम को शांत कर दूंगी.....

तुम नाव हो तो मैं
पतवार बनूंगी
तुम बिन मैं नहीं
मुझ बिन तुम नहीं
बस यही कहूंगी....

हमारे प्यार की इमारत की
नीव है हम दोनों
यह जीवन का सत्य
अंगीकार कर लूंगी....

कहना चाहती हूं कुछ
थोड़ा मुझे भी समझना
नए परिवेश में
तुम्हारे साथ के बिना
अकेले कैसे रहूंगी...

डरती हूं दुनिया के रस्मों रिवाजों से
बंद होते घर के दरवाजों से
क्योंकि घर की आग में मैंने
बेटी को नहीं........
सिर्फ बहू को जलते देखा है..

दीपमाला पांडेय

फ़र्क



कितना अजीब सा शब्द है, 
फ़र्क जब हमें किसी बात का फर्क पड़ता है, 
तो उससे जुड़ी हर बात कभी खुशी तो कभी गम दे जाती है,
कभी नग़मे तो कभी खुशरंग तराना।

जब फर्क पड़ता है, तो ही कोई अपना समझा जाता है, 
वरना सब बेगाने ही तो है, इस दुनिया में।

लाख खून के रिश्ते हो लेकिन अगर उन्हें आपके होने न होने से फर्क न पड़े, तो वो रिश्ते भी बेगाने लगने लगते है।

और वही अगर कोई अजनबी मिल जाये,
जिसे पहले न देखा, न जाना, 
लेकिन आपकी कही गई बातो से उसे फर्क पड़े, 
तो वह अपना सा लगने लग जाता है।

क्या इतना ही जरूरी होता है फ़र्क ?
आखिर फ़र्क है क्या ?
क्यो इसके होने से कोई दुखी है तो कोई इसके न होने से निराश बैठा है? 
आखिर क्यों सबके लिए इतना जरूरी है फ़र्क पढ़ना ?

या फ़र्क बस एक दुनियाँ का छलावा है। 
रिश्ते की बुनियाद फर्क पर नही टिकी होती है, 
यदि ऐसा है तो उस बेटे को क्यों फर्क नही 
पड़ता जो जन्म देने वाली माँ को ही घर से निकाल देता है। 

इस स्थिति में एक ही बात सही सिद्ध होती है,
की उसे अपनी माँ की उपस्थिति से फर्क नही 
पड़ता और जब फर्क नही पड़ता तो 
उसकी बुद्धि शिथिल हो जाती है।

उसे रिश्तों की एहमियत समझ नही आती। 
और सिर्फ इस एक शब्द फ़र्क की वजह से अविभाजित होने वाला रिश्ता टुकड़ो में बट जाता है।

                                                            ममता मालवीय


Lockdown डायरी


मरने का डर और अधपके सपने"
मरने का डर नहीं है
डर है..
अकेले मरजाने का,
डर है..
उन सारे अधपके सपनों के
कच्चा रह जाने का 
जो घुटन की ऊष्मा में सुलगते
खुली आँखों में पकते रहते हैंं,

जिन्हें पकाने के लिए 
मेरे पास पर्याप्त मात्रा में
ईंधन भी है, जो कभी 
अनजाने, अनचाहे, बेमन से
तुम ने ही भेंट किया है,

तुम्हारी उसी भेंट
के लिफाफे में
खुद से छुपा कर
चुपके से,
थोड़ी विवशता और 
बहुत सारा प्रयोजन
मैंने जोड़ दिया है,

हालाँकि उन अधपके
सपनों को पकाते 
अक्सर ही मेरी हथेलियां 
झुुुलस जाया करती हैं,

पर जब कभी ये परोसे जाते हैं 
मन की थाली में,
तब इनके स्वाद की ठंडक
पाकर जैसे कोई अनजानी सी 
प्यास बुझने लगती है 
जैसे अर्से से जागी आँखें 
थक कर सोने लगती हैं 
और जैसे सौ की रफ़्तार से 
भागती धड़कन सुस्ताने लगती हैै।

तुम्हें पता है?
ये अधपके सपने इतने वफ़ादार हैं
कि फूलों के हार की तरह झूलते रहते हैं
मेरे मन की दीवारों पर,

इनकी एक खासियत ये भी है
कि गांठे खुल जाने के बाद भी 
ये बंधें रहते हैं आपस में,

सारी आशाओं के छोर 
छूट जाने के बाद भी
ये जुड़े रहते हैं अपने केेेन्द्र से,

मानो ढूंढते रहें हैं खुद ही
अपने नये - पुुराने सिरे 
ताकि उनमें पिरो सके 
अपेक्षाओं के मोती,

जो उन्हें सहेजने वाले
धागे को जाने अनजाने,
चाहे अनचाहे, 
मन या बेमन से
केवल भरोसे, सब्र 
और प्रेम की ही भेंट दें,
ईंधन की नहीं.

                                                      रिया 'प्रहेलिका'