साहित्य चक्र

27 March 2021

भारत के किसान

भारत के किसान,
लगा रहे हैं दाव पे अपनी जान।

ना कोई उनकी सुनने वाला,
ना कोई समझने वाला,
हर कोई तो बस,
बता रहा है उनका पता खालिस्तान।

कोई बोलता अर्बन नक्सली ,
कोई बोलता बिकाऊ उनको ,
अरे बड़ा ही ध्यान रखते हो उनका ,
अभी खुद का पता भी है क्या तुमको ।

इस कड़ाके की ठंड में
तुम ले रहे हो उनका इम्तिहान। 
वो तो बस अपना हक रहे मांग,
फिर भी तुम कर रहे हो उनको परेशान।

बहन बेटी भी आयी हैं उनकी,
औलादे है सरहद पर जिनकी।
लड़ रही हैं दोनों पीढ़ी,
एक देश बॉर्डर पर,
तो एक सिंघु बॉर्डर पर।

चाहो जितनी गाली निकालो,
चाहो तो डंडे मारो तुम,
फिर भी तुम यह भूल ना जाना,
तुम मार रहे हो उनका अभिमान,
जिनका उगाया तुम खाते हो धान।
भारत के किसान,
लगा रहे हैं दांव पे अपनी जान।

आओ मिलकर साथ दे उनका,
हाल तो जाने उनके मन का,
हरे भरे खेतो को छोड़कर
क्यों वो आये सड़को पर वो,
सरकार के एक बिल के कारण,
क्यो इतने घबराये वो।

अगर साथ नहीं दे सकते,
तो मत उंगली उठाओ तुम।
भगत सिंह के वंसज हैं वो,
आतंकी ना बनाओ तुम।

हँसते हँसते मर जायेंगे, 
पर सीस कभी ना झुकायेंगे। 
पहले भी रण में जीते थे वो,
अब भी जीत जाएंगे वो।

                              ✍️ दीपक बारूपाल

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