साहित्य चक्र

02 May 2020

देश भक्त के लिए मेवाड़



सोचती हूं बार बार कितने वो धीर थे
रिपु को चटाया धूल राणा ऐसे वीर थे


कितने ही कारणों से छिन्न भिन्न प्रांत था जो
मुगलों से लड़कर जीत लिया आपने

बन गया शिला शैय्या हो गया अरण्य धन्य
भोजन महल जब त्याग दिया आपने

आन के नरेश किया दासता स्वीकार नहीं
अन्तिम घड़ी तक स्वतंत्र जिया आपने

होने लगा जय घोष महाराणा महाराणा
शत्रुओं को घाटी में जो मात दिया आपने


देश भक्त के लिए मेवाड़ एक धाम है
हिन्द के हे बेटे तुझे शत शत प्रणाम है


समर भूमि में तलवार का प्रहार क्या ही
कहते हैं राणा का तो अश्व भी कमाल था

अपने शिविर में ही भयभीत सैन्य दल
रहता सजग ऐसा टाप का भूचाल था

हाथियों का सिर पल भर में ही फार देता
उसपे सवार लगे काल का भी काल था

चेतक के संग  महाराणा जैसे वीर योद्धा
शौर्य देख रिपु का तो हाल ही बेहाल था


सोचती हूं बार बार कैसा वो जहान था
अश्व ने बढ़ाया देखो राष्ट्र का भी मान था

                                                 अभिलाषा मिश्र


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