सोचती हूं बार बार कितने वो धीर थे
रिपु को चटाया धूल राणा ऐसे वीर थे
कितने ही कारणों से छिन्न भिन्न प्रांत था जो
मुगलों से लड़कर जीत लिया आपने
बन गया शिला शैय्या हो गया अरण्य धन्य
भोजन महल जब त्याग दिया आपने
आन के नरेश किया दासता स्वीकार नहीं
अन्तिम घड़ी तक स्वतंत्र जिया आपने
होने लगा जय घोष महाराणा महाराणा
शत्रुओं को घाटी में जो मात दिया आपने
देश भक्त के लिए मेवाड़ एक धाम है
हिन्द के हे बेटे तुझे शत शत प्रणाम है
समर भूमि में तलवार का प्रहार क्या ही
कहते हैं राणा का तो अश्व भी कमाल था
अपने शिविर में ही भयभीत सैन्य दल
रहता सजग ऐसा टाप का भूचाल था
हाथियों का सिर पल भर में ही फार देता
उसपे सवार लगे काल का भी काल था
चेतक के संग महाराणा जैसे वीर योद्धा
शौर्य देख रिपु का तो हाल ही बेहाल था
सोचती हूं बार बार कैसा वो जहान था
अश्व ने बढ़ाया देखो राष्ट्र का भी मान था
अभिलाषा मिश्र
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