साहित्य चक्र

02 May 2020

नमन करता हूं...



नमन करता हूं मैं उनको, 
जो धरा के लाडले है,
देश पर जब बात आये, 
वो जरा से बाबले है,
शादी के मंडप से उठकर, 
वो तो रण में पहुंच जाते,
सौ हजारों को गिराते, 
शत्रु को हुंकार से ही हरा आते,
शिव जी का त्रिशूल वो तो, 
विष्णु का जैसे सुदर्शन,
दुश्मनों के सामने, 
लगते हैं जैसे काल दर्शन,
वीरता से वो धरा पर, 
गिरते हैं तो स्वर्ग जाते,
हाथों में वो झंडा लेकर, 
तिरंगे को वो गले लगाते,
है नमन उनको मेरा..

बंदी मां की बेड़ियों को, 
तोड़ने में प्राण त्यागे,
उनके सामने मृत्यु थी, 
फिर भी वह तो ना ही भागे,
जिनके आगे नत हिमालय, 
जिनके तेज से सूर्य हारा,
सागर की गहराई ने भी, 
खुद को उन से ऊंचा पाया,
ना बुढ़ापा उनने देखा, 
ना जवानी देख पाए,
लड़कपन में ही जिन्होंने, 
प्राण अपने थे गंवाए,
भगत सिंह ने अंत तक, 
इन्कलाब का गान गाया,
इन्कलाब कह कर उन्होंने, 
फांसी का फंदा लगाया,
है नमन उनको मेरा..


                                       नीलेश मालवीय "नीलकंठ"


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