संरचनाओं की छवि हूं
हाँ.. मैं एक कवि हूं।
मंद मंद मुस्कुराते हैं
ख्याल मेरे
भावनाओं में हैं
भार मेरे
यह कलम सुने
जो कोई ना कहे।
संरचनाओं की छवि हूं
हाँ..! मैं एक कवि हूं।
उतावला होता है मेरा मन,
देख के दुनिया के अद्भुत रंग
दर्द प्यार से होके परे
कहती हूं कुछ शब्द खरे
क्योंकि मैं कवि हूं।
निहारिका बिष्ट
Bht khub Niharika jiii👌👌😊
ReplyDeleteNyc
ReplyDeleteWah wah mam
ReplyDeleteOr
aise hi likhte rho
The poem is very good
ReplyDeleteVery nice poem...Ma'am
ReplyDeleteNice vibe....keep it up
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